संसद के बजट सत्र में सोमवार को पद्दोन्नति में आरक्षण का मुद्दा छाया रहा. लोकसभा में विपक्षी नेता सुप्रीम कोर्ट के टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार पर हमलावर दिखे और सरकार से इस मसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग की. इस दौरान सदन में सत्तापक्ष और विपक्षी नेताओं में तीखी बहस भी देखने को मिली जब लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी और संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी आपस में भिड़ गए.
विपक्ष के आरोपों पर प्रहलाद जोशी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड सरकार का पक्ष है और इसका भारत सरकार से कोई लेना-देना नहीं है. साथ ही सदन को बताया गया कि सामाजिक न्याय मंत्री नरेंद्र तोमर भी इस मुद्दे पर लोकसभा में बयान देंगे. हालांकि मंत्री के बयान से कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने संतुष्ट नहीं दिखे और उन्होंने कहा कि यह सरकार मनुवाद में विश्वास रखती है.
नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी कि उत्तराखंड सरकार कैसे कह सकती है कि प्रमोशन में आरक्षण का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है और सरकार का कोई भी दायित्व नहीं है. बता दें कि कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी देते हुए कहा है कि पद्दोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और इसे लागू करना राज्य सरकारों पर निर्भर करता है.
कोर्ट के इसी बयान को लेकर संसद में घमासान मचा हुआ है. विपक्ष के साथ-साथ सरकार के सहयोगी दल भी इसे आरक्षण के लिए खतरा मान रहे हैं. बीजेपी की सहयोगी लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने लोकसभा में कहा कि अंबेडकर और महात्मा गांधी की कोशिश के बाद ही हम लोगों को आरक्षण मिला है और यह संवैधानिक अधिकार है.
पासवान ने कहा कि आरक्षण कोई खैरात नहीं है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को लोक जनशक्ति पार्टी खारिज करती है और उसे सहमत नहीं है. उन्होंने केंद्र सरकार से इस बारे में अपील करने की मांग की है. साथ ही पासवान ने कहा कि केंद्र सरकार ऐसे प्रावधान करे जिससे बार-बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के रास्ते ही बंद हों और सामाजिक व्यवस्था की मजबूती बरकरार रह सके.
बसपा ने भी कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं. पार्टी सांसद रितेश पांडे ने कहा कि उत्तर प्रदेश में हम लोगों ने प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था कराई गई थी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना और सरकार का यह पक्ष देना इससे यह साफ है कि ये दलित विरोधी और एससी-एसटी विरोधी सरकार है.
वहीं अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने कहा कि हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले मंजूर नहीं है और ऐसे फैसलों से जाहिर है कि न्यायपालिका में एससी-एसटी का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. यही वजह है कि वहां से ऐसे फैसले आते हैं. पूर्व मंत्री पटेल ने केंद्र सरकार से तुरंत इस मसले पर दखल देने की मांग की है.