लोकसभा चुनाव में दलबदल का खेल: नेताजी को मिला ब्रह्म ज्ञान- टिकट छोड़ सब भ्रम

पटना [राज्य ब्यूरो]। चुनाव की घोषणा से पहले ही नेताजी बता रहे हैं कि राजनीति में टिकट ही सत्य है, बाकी सब भ्रम है। शुरुआत रालोसपा से हुई। धीरे-धीरे अन्य दलों के कई नेता इस दिव्य ज्ञान की चपेट में आकर निकल गए। कीर्ति झा आजाद और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बड़े नेता समझ गए थे कि मां समान कही जाने वाली पार्टी में टिकट की गुंजाइश नहीं है। चुनाव से बहुत पहले दोनों ने नए घर की खोज शुरू कर दी थी। घर मिल भी गया।

रालोसपा को सबसे अधिक झटका

रालोसपा को सबसे अधिक झटका लगा। नेताओं को जैसे-जैसे बेटिकट होने का अनुमान हुआ, एक-एक कर खिसकने लगे। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक को पार्टी छोडऩे में मिनट भर का समय नहीं लगा। पूर्व मंत्री नागमणि और श्रीभगवान सिंह कुशवाहा टिकट की उम्मीद में ही जदयू में गए थे। बेचारों को वहां भी निराशा ही हाथ लगी। हरेक दल का भ्रमण कर चुके नागमणि के लिए फिलहाल छलांग लगाना कठिन लग रहा है। श्रीभगवान सिंह कुशवाहा के साथ भी यही परेशानी है। वे कई बार राजद-जदयू का दौरा कर चुके हैं।

हंगामे पर उतर आए कांग्रेसी

कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में होली से पहले जबरदस्त हंगामा हुआ। हंगामा करने वाले लोग पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार का समर्थक होने का दावा कर रहे थे। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब निखिल कुमार के परिवार को टिकट नहीं मिला है। बस, समर्थक इसी बात से नाराज हो गए।

भाजपा भी इस बीमारी से अछूती नहीं

खुद को अनुशासित कहने वाली भाजपा भी इस बीमारी से अछूती नहीं है। पार्टी के दो पदाधिकारी अजय कुशवाहा और श्रीधर मंडल टिकट बंटवारे में गड़बड़ी का आरोप लगाकर निकल गए हैं। मंडल भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रह चुके हैं।

मांझी के घरौंदे में भी हाय-तौबा

टिकट की मारामारी में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) उजड़ गया। वृशिण पटेल संस्थापकों में थे। सीट मिलने की संभावना नहीं थी। पार्टी से अलग हो गए। मोर्चा में नेताओं की इतनी कमी हो गई कि लोकसभा की एक सीट के लिए दूसरे दल से उम्मीदवार बुलाना पड़ा।

राजद में उम्मीद की वजह से शांति

राजद की बिहार इकाई में फिलहाल शांति है, क्योंकि टिकट का बंटवारा पूरी तरह नहीं हुआ है। सुपौल जिला के पार्टी संगठन में कांगे्रेसी सांसद रंजीत रंजन को लेकर नाराजगी है, लेकिन झारखंड में तो राजद को तगड़ा झटका लगा है। पूर्व मंत्री अन्न्पूर्णा देवी और राजद की पहचान एक-दूसरे से थी। वह भाजपा में चली गईं।

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