प्रकृति अनेक जड़ी बूटियों के भंडार से भरी हुई है। कुछ पौधों और फलों का हम अनायास ही सेवन कर लेते हैं। मगर इनके औषधीय गुणों से हम अनजान रहते हैं। ऐसा ही एक पौष्टिक फल है जिसे कुमाऊं में पांगर के नाम से जाना जाता है। इस फल के आवरण पर अनगिनत कांटे होते हैं। इसके औषधीय गुणों से अनजान होने के कारण इसका उचित दोहन नहीं हो पा रहा है।

दक्षिण पूर्व यूरोप का फल चेस्टनेट अथवा पांगर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बहुतायत रूप में पाया जाता है। स्थानीय लोगों इसे पांगर के रूप में जानते हैं। चेस्टनेट मीठा फल होने के साथ औषधीय गुणों की खान है।
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि पांगर गठिया रोग के इलाज के लिए कारगर दवा के रूप में लिया जाता है। ब्रिटिश काल में मध्य यूरोप से भारत आया यह फल अंग्रेजों ने अपने बंगलों और डाक बंगलों में लगाए गए। ऐसे ही कुछ वृक्ष मानिला के फारेस्ट डाक बंगले में आज भी हैं। जो इन दिनों फलों से लकदक हैं।
चेस्टनेट का वास्तविक नाम केस्टेनिया सेटिवा है। फेगसी प्रजाति के इस वृक्ष की विश्व भर में लगभग 12 प्रजातियां हैं। लगभग पंद्रह सौ मीटर से अधिक ऊंचाई पर उगने वाले इस वृक्ष की औसत उम्र तीन सौ सालों से भी अधिक होती है। इस वृक्ष का फल औषधीय गुणों से भरपूर है जिसके सेवन से गठिया रोग को ठीक करने में मदद मिलती है।वही यह पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन को रोकने और जल संवर्धन में भी बेहद कारगर है।
चेस्टनेट का स्वाद मीठा होता है।औषधीय गुणों की प्रचुर मात्रा होने के कारण इसकी अच्छीखासी मांग है। यह 300 से लेकर 400 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। जिस कारण यह काश्तकारों के लिए आजीविका का बेहतर साधन भी हो सकता है। इसके पेड़ में जून जुलाई के दौरान फूल आते हैं तथा सितंबर अक्टूबर तक फल पक जाते है।
जौरासी रेंज के वन क्षेत्राधिकारी मोहन राम आर्या के अनुसार वन विभाग के मानिला स्थित वन विश्राम गृह के परिसर में कुछ वृक्ष आज भी मौजूद हैं जिनकी उम्र सौ वर्षों से भी अधिक है। उन्होंने बताया कि इस वृक्ष का फल बाहर से नुकीले कांटों की परत से ढका रहता है। फल पकने के बाद यह स्वतः गिर जाता है। इसके कांटेदार आवरण को निकालने के बाद इसके फल को निकाल लिया जाता है।
इसे हल्की आंच में भूना या उबाला जाता है। फिर इसका दूसरा आवरण चाकू से निकालने के बाद इसके मीठे गूदे को खाया जाता है। बागवानी में रुचि रखने वाले भिकियासैंण के वर्तमान तहसीलदार हेमंत मेहरा बताते हैं कि यदि पांगर फल की परिष्कृत प्रजाति को व्यवसायिक खेती के रूप में उगाया जाता है तो निश्चित ही काश्तकारों की आर्थिकी बेहतर होगी
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