देश में पशु-पक्षियों से होने वाली बीमारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसमें कई प्रकार के फ्लू, जापानी बुखार, रोटा वायरस व ब्रुसेला जैसी बीमारियों की पहचान और रोकथाम के लिए माल्युकुलर डाइग्नोस्टिक कारगर तकनीक है। इस तकनीक का प्रयोग कर बर्ड फ्लू और कोरोना वायरस जैसे रोगों की जल्द पहचान व नियंत्रण कार्यक्रम तक बनाया जा सकता है। दरअसल पशुओं से जुड़ी बीमारियों पर नियंत्रण के लिए हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीई) में देशभर से आए पशु विज्ञानियों को 10 दिन का क्रैश कोर्स कराया जा रहा है।
जिसमें जल्द से जल्द बीमारियों की पहचान व निदान की तकनीक बताई जा रही हैं। 10 दिवसीय कोर्स में सोमवार को विज्ञानी बताते हैं कि माल्युकुलर डाइग्नोस्टिक तकनीक में पशुओं का सैंपल लेकर इसमें से डीएनए या आरएनए निकाला जाता है। डीएनए पर माल्युकुलर डाइग्नोस्टिक तकनीक का प्रयोग करते हैं जिससे बीमारी का कुछ ही समय में पता चल जाता है। ऐसे में इस तकनीक से जल्द से जल्द बीमारी को पहचान कर नियंत्रण कार्यक्रम पर काम किया जा सकता है।
प्रशिक्षण का यह है उद्देश्य
पशु विज्ञानियों को यह कोर्स कराने का सीधा तात्पर्य है कि वह अपने यहां छात्रों को नवीन तकनीक के बारे में बताएं ताकि देश में जल्द से जल्द इन बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सके। पशुओं व मुर्गियों में फैलने वाली बीमारियों के निदान व टीकाकरण को लेकर नई अप्रोच की आवश्यकता है। इसको लेकर यह प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
नए वायरस से तैयार करेंगे टीका
1- रिवर्स जेनेटिक– एनआरसीई में प्रधान वैज्ञानिक डा. नितिन बिरमानी बताते हैं कि रिवर्स जेनेटिक में हम ऐसे वायरस तैयार कर रहे हैं, जिनकी मदद से बीमारियों पर नियंत्रण के लिए टीके की योजना बना सकें। इसमें वायरस का जीन निकालकर पुराने वायरस में डाल दिया जाता है। यह रीकोबिनेंट वायरस बनाकर टीका बनाने का एक आधुनिक उपाय है।
2- वैक्टीरियल आर्टिफिशियल क्रोमोजोम– इस तकनीकि में विषाणु को किटाणु में डालकर उसकी डीएनए को म्युटेट करते हैं। इस प्रक्रिया से विषाणु की बीमारी करने की उग्रता को घटाया जा सकता है, ताकि उस विषाणु को टीके की तरह प्रयोग में ला सकें। इस तरह की बनी हुई वैक्सीन को मोडिफाइड लाइव वैक्सीन की तरह प्रयोग किया जाता है।
प्रशिक्षण में शामिल हुए देशभर के विज्ञानी
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा एनआरसीई में आयोजित 10 दिवसीय कोर्स के निदेशक डा. बीएन त्रिपाठी व सह समन्वयक डा. राजेंद्र कुमार, डा. नितिन बिरमानी, डा. संजय बरुआ हैं। इसमें लुधियाना से दो विज्ञानी, फैजाबाद से एक, मेरठ से एक विज्ञानी, हिमाचल प्रदेश से एक विज्ञानी, लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय से दो विज्ञानी, केरल मेडिकल कालेज से दो विज्ञानी, रांची स्थित वेटरनरी कालेज से एक विज्ञानी शामिल हैं।