कहा जाता है राजभोज और महामद की कथा सुनने मात्रा से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और लाभ होना शुरू हो जाता है. ऐसे में आज हम आपको राजभोज और महामद की कथा सुनाने जा रहे हैं जो आपको हमेशा सुननी चाहिए. राजा भोज की कहानी सभी को सुनना चाहिए एक वही है जिन्होंने मर्यादा की स्थापना की थी.
राजभोज और महामद की कथा – सूतजी ने कहा – ऋषियों ! शालिवाहन के वंश में दस राजा हुए. उन्होंने पांचसौ वर्षो तक शासन किया और स्वर्गवासी हुए. तदन्तर भूमंडल पर धर्म मर्यादा लुप्त होने लगी. शालिवाहन वंश में अन्तिम दसवें राजा भोजराज हुए.उन्होंने देश की मर्यादा क्षीण होती देख दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया.उनकी सेना दस हजार थी और उनके साथ कालिदास एवं अन्य ब्राह्मण थे. उन्होंने सिन्धु नदी को पार कर गांधार ,म्लेच्छ , और काश्मीर में शठ राजाओं को पराजित किया तथा उनका कोष छीन कर उन्हें दंडित किया.उसी प्रसंग में आचार्य एवं शिष्य मंडल के साथ म्लेच्छ महामद नाम का व्यक्ति उपस्थित हुआ. राजा भोज ने मरुस्थल में स्थित महादेव जी के दर्शन किये. महादेव जी को पंचगव्य मिश्रित गंगा जल से स्नान कराकर चन्दन आदि सुघ्न्दित द्रव्यों से पूजन किया और उनकी स्तुति की. भोजराज ने कहा – हे मरुस्थल में निवास करने वाले तथा म्लेच्छो से गुप्त शुद्धसचिदानन्द स्वरूप वाले गिरिजापते ! आप त्रिरिपुरासुर के विनाशक तथा नानाविध माया शक्ति पर्वतक हैं. मैं आपकी शरण में आया हूँ , आप मुझे अपना दास स्वीकार करे. आपके श्री चरणों में मेरा बारम्बार नमस्कार. इस स्तुति को सुन कर भगवान शिव ने राजा से कहा – हे भोजराज ! तुम्हे महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए. यह वाहिक नामक भूमि हैं , पर म्लेच्छो से दूषित हो गई. इस प्रदेश में आर्य धर्म हैं ही नहीं. महामायावी त्रिरपुरासुर यहा दैत्यराज बलि द्वारा प्रेषित किया गया है. मेरे द्वारा वरदान प्राप्त कर वह दैत्य समुदाय को बढ़ा रहा हैं. वह आयोनिज हैं. उसका नाम महामद हैं.
राजन ! तुम्हे इस अनार्य देश नहीं आना चाहिए. मेरी कृपा से तुम विशुद्ध हो.’ भगवान शिव के वचनों को सुन राजा भोज अपने देश वापस चला गया. राजा भोज ने ब्राह्मणों के लिए संस्कृत वाणी का प्रचार किया और शुद्रो के लिए प्राकृत भाषा चलाई. उन्होंने पचास वर्ष तक राज्य किया और अंत में स्वर्गलोक को प्राप्त किया. उन्होंने देश में मर्यादा की स्थापना की. विन्ध्यगिरि और हिमालय के मध्य में आर्यावर्त हैं., वहां आर्य लोग रहते हैं.