राजाजी नेशनल पार्क के भीतर मौजूद घनी आबादी वाले क्षेत्र जल्द ही पार्क सीमा से बाहर होंगे। इन्हें निकालने से कम होने वाले वन क्षेत्र की भरपाई देहरादून समेत नजदीकी वन प्रभागों के कुछ हिस्सों को पार्क में शामिल कर होगी। राज्य वन्यजीव बोर्ड से हरी झंडी मिलने पर अब महकमा इस सिलसिले में प्रस्ताव तैयार करने में जुट गया है। वन्यजीव बोर्ड की अगली बैठक में इसे अनुमोदन के लिए रखा जाएगा।
राजाजी नेशनल पार्क की सीमा और इसके बफर जोन से लगे क्षेत्रों में करीब एक दर्जन गांव हैं। इन गांवों के बाशिंदे वन कानूनों की बंदिशों से दो-चार हो रहे हैं। पार्क क्षेत्र में स्थित गांवों में न तो घरों में तेज रोशनी की जा सकती है और न तेज आवाज में रेडियो ही बजा सकते हैं। साथ ही मूलभूत सुविधाएं भी पसर नहीं पा रही हैं। इस सबको देखते हुए इन गांवों के लोग उन्हें पार्क से बाहर करने की मांग उठाते आए हैं।
इस सबको देखते हुए वन महकमे ने राजाजी नेशनल पार्क से घनी आबादी वाले क्षेत्रों को बाहर करने के मद्देनजर रैशनलाइजेशन से संबंधित प्रस्ताव वन्यजीव बोर्ड की पिछली बैठक में रखा था। बोर्ड ने इस पर सहमति जताई। तय हुआ था कि घनी आबादी वाले क्षेत्रों को पार्क से बाहर निकालने पर इनके स्थान पर पार्क के क्षेत्रफल में देहरादून वन प्रभाग व अन्य नजदीकी वन प्रभागों के क्षेत्रों को प्रतिपूर्ति के तौर पर शामिल किया जाएगा।
अब इस सिलसिले में कसरत शुरू कर दी गई है। राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक को इस सिलसिले में जल्द प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। सूत्रों के मुताबिक आबादी क्षेत्रों को पार्क से हटाने पर इसकी प्रतिपूर्ति के लिए देहरादून, लैंसडौन व हरिद्वार वन प्रभागों के कुछ क्षेत्र पार्क में शामिल किए जाएंगे। पार्क निदेशक इसका विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर वन्यजीव बोर्ड की अगली बैठक में रखेंगे। माना जा रहा कि बोर्ड में इस पर मुहर लगने के बाद इन गांवों को पार्क से बाहर निकालने का रास्ता साफ हो जाएगा।
जल्द पूरी होगी गांवों की साध
वन एवं पर्यावरण मंत्री उत्तराखंड डॉ. हरक सिंह रावत के अनुसार, राजाजी नेशनल पार्क के भीतर और इसके बफर जोन से लगे गांवों के लोग उन्हें पार्क और पार्क के ईको सेंसिटिव जोन से बाहर करने की मांग कर रहे हैं। इसे देखते हुए गंभीरता से पहल की जा रही है। जल्द ही संबंधित गांवों के लोगों की साध पूरी होगी।