राजस्थान में सीएम की कुर्सी के कई दावेदार

 राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को सियासी शिकस्त देते हुए बड़ी जीत हासिल की है। पार्टी को 199 सीटों में से 115 पर जीत हासिल हुई है, वहीं कांग्रेस का खेमा महज 69 सीटों पर ही सिमट गया। जानकारों का मानना है कि भाजपा की यह जीत एक महीने तक चले गहन अभियान का नतीजा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पार्टी के शीर्ष नेताओं ने राजस्थान के कोने-कोने में रैलियां की हैं।

भाजपा ने राजस्थान में बड़ी अंतर से जीत हासिल की है, लेकिन जीत का सेहरा किस के सिर बांधा जाएगा इसकी घोषणा नहीं की है। राजस्थान में प्रदेश की राजनीति के सबसे ऊंचे पद यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी के कई प्रबल दावेदार हैं। यहां हम ऐसे सात नामों के बारे में आपको बताएंगे, जिनके नाम बढ़-चढ़कर आगे आ रहे हैं। 

वसुंधरा राजे

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पूरे राजस्थान में लोकप्रियता है। उन्होंने राज्य में भाजपा को दो बड़ी जीत दिलाई है। भाजपा के संस्थापक नेता विजयराजे सिंधिया की बेटी और दिवंगत कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया की बहन, वसुंधरा राजे ने 1984 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, इसकी युवा शाखा के उपाध्यक्ष के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया और धौलपुर से विधायक के रूप में चुनी गईं।

साल 2003 में जब राजस्थान में भाजपा की सरकार बनी तो वसुंधरा राजे राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। वह तीन बार राज्य विधानसभा के लिए और पांच बार लोकसभा के लिए चुनी गईं और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में मंत्री भी रहीं।

गजेंद्र सिंह शेखावत

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भाजपा के चुनाव अभियान में एक प्रमुख चेहरा थे और वो सभी असंतुष्ट चेहरों को एक साथ लाने में कामयाब रहे। वह संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ सार्वजनिक झगड़े में भी शामिल थे।

2019 के आम चुनाव में शेखावत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को हराकर अपनी राजनीतिक कौशल की पुष्टि की। हाल ही में हुए एक सर्वें में सामने आया था कि शेखावत, वसुंधरा राजे और बाबा बालकनाथ के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए तीसरे सबसे अच्छी पसंद में से एक हैं।

दीया कुमारी

जयपुर के शाही परिवार की सदस्य दीया कुमारी साल 2013 में भाजपा में शामिल हुईं। उसके बाद से उन्होंने तीन चुनावों में जीते हैं। वह 2019 के आम चुनाव में 5.51 लाख वोटों के अंतर से जीती थीं। जो की उस वक्त की सबसे बड़ी जीत में से एक थी।

‘जयपुर की बेटी’ लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है और अपनी शाही विरासत को एक साधारण व्यक्तित्व के साथ के लिए जानी जाती है। जब वह सवाई माधोपुर की विधायक बनीं तो उन्हें बाहरी माना जाता था, लेकिन निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के कारण वह लगातार प्रमुखता से उभरीं।

बाबा बालकनाथ

राजस्थान में भाजपा की प्रचंड जीत से एक और ‘योगी’ का उदय हो सकता है। अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ को लोकप्रिय रूप से राजस्थान के योगी के रूप में जाना जाता है और वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। उन्हें एक मजबूत हिंदुत्व नेता माना जाता है जो राजस्थान की जातीय कहानी को बदल सकते हैं। तिजारा विधानसभा क्षेत्र से 40 वर्षीय नेता अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इमरान खान के खिलाफ अपने मुकाबले की तुलना भारत-पाकिस्तान मैच से की थी।

अर्जुन राम मेघवाल

राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार अर्जुन राम मेघवाल नाम से ज्यादा काम में विश्वास रखते हैं। प्रदेश की राजनीति में उनकी हरी और नारंगी पगड़ी उनका ट्रेडमार्क बन चुकी है। विवादित बयान-बाजी से दूर रहने वाले मेघवाल, अपने क्षेत्र की जनता से खुलकर मिलते हैं। उनके पास एक मजबूत प्रशासनिक पृष्ठभूमि है और वर्तमान में वह कानून मंत्री हैं।

उन्होंने संसद के दोनों सदनों में सरकार के लिए बहुमत जुटाने, सरकार द्वारा पारित किए जाने वाले हर विधेयक के लिए समर्थकों को इकट्ठा करने और इसे कानून में बदलने के लिए आवश्यक संख्या सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

किरोड़ी लाल मीणा

भाजपा के दिग्गज नेता किरोड़ी लाल मीणा को मीणा समुदाय पर जीत हासिल करने के काम के साथ राजस्थान की चुनावी लड़ाई में उतारा गया था। पूर्वी राजस्थान में पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि मीणा पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं। ‘डॉक्टर साहब’ और ‘बाबा’ के नाम से लोकप्रिय किरोड़ी लाल मीणा राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं।

सीपी जोशी

राजस्थान भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख सीपी जोशी को मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। 48 वर्षीय जोशी को मार्च की शुरुआत में राज्य इकाई का प्रभार सौंपा गया था। सीपी जोशी को प्रतिद्वंद्वी गुटों को एक साथ लाने और एक एकजुट अभियान तैयार करने का श्रेय दिया जाता है। जो कथित सत्ता विरोधी लहर और कांग्रेस की विफलताओं पर केंद्रित है।

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