राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे विरोधी नेता एकजुट होने लगे हैं। एक साल पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद वसुंधरा राजे विरोधी नेताओं की सक्रियता बढ़ी और अब यह खेमा लगातार मजबूत होता जा रहा है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर सतीश पूनिया की ताजपोशी के बाद यह खेमा और अधिक मजबूत हो गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के निकट माने जाने वाले सतीश पूनिया शुरू से ही वसुंधरा राजे विरोधी खेमे में शामिल रहे हैं।
वसुंधरा राजे के सत्ता से हटने के बाद उनके विरोधी नेताओं ने आरएसएस के प्रदेश पदाधिकारियों के माध्यम से सतीश पूनिया को अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व को तैयार किया। अब पूनिया के अध्यक्ष बनने के बाद ये नेता वसुंधरा राजे समर्थकों को मुख्यधारा से दूर करने की कोशिश में जुटे हैं।
केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, संसदीय कार्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल, कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया, राज्यसभा सदस्य डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, सांसद दीया कुमारी, पूर्व मंत्री मदन दिलावर, जोगेश्वर गर्ग, पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष ज्ञानदेव आहूजा और पूर्व मुख्य सचेतक महावीर प्रसाद जैन आदि नेता वसुंधरा राजे विरोधियों को एकजुट करने में जुटे हैं। इन सभी नेताओं का मकसद राज्य भाजपा में वसुंधरा राजे युग का अंत करना है।
इन नेताओं की रणनीति है कि वसुंधरा राजे के समर्थक नेताओं को पार्टी की मुख्यधारा से अलग करने की है। इसी के तहत वसुंधरा राजे के कट्टर विरोधी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष सांसद हनुमान बेनीवाल से निकटता बढ़ाई जा रही है।
इसी रणनीति के तहत कुछ दिनों पूर्व हुए दो विधानसभा सीटों के उप चुनाव में खींवसर सीट पर वसुंधरा राजे के विरोध के बावजूद हनुमान बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल को समर्थन दिया गया। पार्टी के इस फैसले से नाराज वसुंधरा राजे खींवसर के साथ ही मंडावा में भी चुनाव प्रचार करने नहीं गई।