अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी वर्जिन हाइपरलूप ने दुनिया में पहली बार यात्रियों के साथ अमेरिका के नेवादा में हाईस्पीड लेविर्टेंटग पॉड सिस्टम का परीक्षण किया। कंपनी के चीफ टेक्नोलॉजी अफसर जोश गिगेल और डायरेक्टर कस्टमर एक्सपीरियंस सारा लुचियान परीक्षण में शामिल रहे। इस दौरान हाइपरलूप ने 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार हासिल की। आवागमन में क्रांति लाने वाली यह भविष्य की परिवहन योजना है, जिसमें यात्रियों को एक वैक्यूम पॉड के जरिये गंतव्य तक ले जाया जा सकता है।
सुरक्षा और आराम का ध्यान
यह परीक्षण लास वेगास में वर्जिन हाइपरलूप के 500 मीटर के परीक्षण स्थल पर किया गया। यहां पर कंपनी अब तक करीब 400 टेस्ट कर चुकी है। फिलहाल एक्सपी-2 परिवहन वाहन को लोगों की सुरक्षा और आराम को देखकर बनाया है। यह वाहन सिर्फ प्रदर्शन के लिए बनाया गया है, जब वास्तविक परिवहन शुरू होगा तो वाहन 28 सीटों वाला होगा।
ऐसे जानिए हाइपरलूप तकनीक को
हाइपरलूप तकनीक जमीनी यातायात का एक नया तरीका है। इसमें घर्षण को रोकने के लिए हवा को बाहर निकाल दिया (निर्वात) जाता है। इसके जरिये एक समय में सैकड़ों लोगों और सामान को जमीन के ऊपर या नीचे इन ट्यूबों या सुरंगों के माध्यम से भेजा जा सकेगा।
1,000 किमी प्रति घंटे का लक्ष्य
हाइपरलूप पॉड से रफ्तार का लक्ष्य बहुत अधिक है, लेकिन फिलहाल यह 160 किमी प्रति घंटे की गति हासिल कर सकी है। इन वैक्यूम पॉड के माध्यम से 1,223 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।
भविष्य को बदलने वाली तकनीक
र्विजन ग्रुप के फाउंडर रिचर्ड ब्रैनसन ने कहा कि हाइपरलूप टीम इस तकनीक के हकीकत में बदलने पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इस सफल परीक्षण के साथ हमने दिखाया है कि नवाचार की यह भावना लोगों के रहने, काम करने और यात्रा करने का तरीका बदल देगी।
कई कंपनियां हैं मैदान में
परिवहन की इस अवधारणा को सबसे पहले एलन मस्क ने 2013 में सामने रखा था। इसके बाद से कई कंपनियां हैं, जो इस सपने को सच करने में जुटी हैं। टेस्ला के साथ ही वर्जिन हाइपरलूप, हाइपरलूप ट्रांसपोर्ट टेक्नोलाजी, एरिवो, हड्र्ट हाइपरलूप, जेलेरोस जैसी कई कंपनियां जुटी हैं।
बेंगलुरु में भी हो सकती है शुरू
वर्जिन हाइपरलूप कंपनी ने सितंबर 2020 में बेंगलुरु से
पेगोड़ा एयरपोर्ट के मध्य हाइपरलूप कॉरिडोर के अध्ययन के लिए एमओयू साइन किया है। बेंगलुरु से कैंपेगौड़ा एयरपोर्ट पहुंचने में एक घंटे लगता है। यदि यह तकनीक शुरु होती है तो यात्री सिर्फ 10 मिनट में यहां पहुंच सकेंगे।