‘हम दिल दे चुके सनम’ और ‘लगान’ फिल्मों में नज़र आता आलीशान महल कच्छ का विजय विलास पैलेस है। जिसकी खूबसूरत आज भी वैसे ही बरकरार है। अगर आप इतिहास को जानने और देखने का शौक रखते हैं तो गुजरात आकर इस महल की शानों-शौकत को देखने जरूर जाएं।
महल का इतिहास
इस महल का निर्माण महाराव विजयराजजी के शासनकाल में हुआ था। सन् 1920 से शुरू हुए महल का निर्माण 1929 में पूरा हुआ था। मांडवी में इंडो-यूरोपियन स्टाइल में बने हुए इस महल को इस्तेमाल राजा-महाराजा गर्मियों में करते थे।
महल की बनावट
महल के अंदर और बाहर की बनावट इतनी खूबसूरत है कि इसे कैमरे में बिना कैद किए नहीं रह पाएंगे। इसकी बनावट काफी कुछ ओरछा और दतिया महलों से मिलती-जुलती हुई है। महल के बाहर आप राजपूताना आर्किटेक्चर को आसानी से देख सकते हैं। बीच में बड़ा गुंबद है और किनारों पर बंगाल गुंबद है, रंगीन कांच की दीवरों पर की गई नक्काशी बेहद खूबसूरत है।
महल की जाली, झरोखे, छत्री, छज्जे, मुरल और, रंगीन कांच पर कारीगरी में जयपुर, राजस्थान, बंगाल और सौराष्ट्र के कारीगरों का कमाल है। अलग-अलग जगहों की कलाओं का बेजोड़ तालमेल इस महल में आकर देखने को मिलता है। फर्स्ट फ्लोर पर रॉयल फैमिली रहती थी। लाल रंग के पत्थरों से बने हुए इस महल पर जब शाम को ढलते सूरज की रोशनी महल पर पड़ती है तो यह बिल्कुल सोने जैसा चमकता है।
हालांकि अब यह महल टूरिस्टों के लिए खोल दिया गया है। जिसे देखने के लिए अच्छी-खांसी भीड़ इकट्ठा होती है। लेकिन महल की खूबसूरती आज भी वैसे ही बरकरार है। महल का एक हिस्सा रिजॉर्ट में बदल दिया गया है। जो टूरिस्टों के लिए सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं।
विजय विलास पैलेस घूमने आएं तो इन बातों का रखें ध्यान
टाइमिंग- रोज़ाना सुबह 8 बजे से शाम 6.30 बजे तक
महल को इत्मीनान से घूमने के साथ ही यहां की हर खूबसूरत चीज़ को कैमरे में कैद करना चाहते हैं तो सुबह-सुबह आएं जब यहां भीड़ नहीं होती और साथ ही उस दौरान सूरज की खिलती धूप में महल की अलग ही चमक नज़र आती है।
कैसे पहुंचे
भुज से हर आधे घंटे पर मांडवी के लिए जीप और बसें चलती हैं। शहर से 7 किमी की दूरी पर बने इस पैलेस तक आप टैक्सी बुक करके भी पहुंच सकते हैं।
कहां ठहरें
विजय विलास पैलेस का ही एक हेरिटेज लक्ज़री रिजॉर्ट भी है जो बीच के काफी नज़दीक है। वैसे मांडवी में आपको और भी दूसरे बजट होटल्स मिल जाएंगे।