ये अगले लोकसभा चुनावों का संकेत है चुनाव पर‍िणाम: अशोक गहलोत

राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम के रूझान सभी 199 सीटों पर आ गए हैं, जिसमें कांग्रेस सरकार बनाती नजर आ रही है. कांग्रेस के पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत ने इन परिणामों को अगले लोकसभा चुनावों का संकेत माना है.

कांग्रेस को मौका मिलने की वजह बताते हुए गहलोत बोले कि ये बात मैं दिल्ली में भी कह चुका हूं कि हमारे कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को उनके खुद के राज्‍य में, अमित शाह को उनके खुद के राज्‍य में जिस प्रकार घेरा, वह पूरा देश देख रहा था. उसकेबाद से वह उठ खड़े नहीं हो पा रहे. वह समझ नहीं पा रहे हैं कि मध्‍यप्रदेश, छत्‍तीसगढ़, राजस्‍थान के परिणाम ऐसे क्‍यों आ रहे हैं. 

ये इसलिए आ रहे हैं कि उनको इतना घेर दिया गया था कि वह किसी इश्‍यू का जवाब नहीं दे पाए. बिना इश्‍यू के इलेक्‍शन लड़ा है उन लोगों ने. वह सत्‍ता में थे इसलिए वहां पर जो इश्‍यू नहीं थे, उनको इश्‍यू बनाया. कभी गुजरात की बेइज्‍जती हो रही है, कभी मेरी बेइज्‍जतीहो रही है, कभी पूरी कौम की बेइज्‍जती हो रही है. इस भाषा को लेकर वह बोले थे और टेक्‍नि‍कली चुनाव जीत गए. ये न बीजेपी की जीत थी और न कांग्रेस की हार थी. ये मैं दावे के साथ कह सकता हूं. पूरा देश इस बात को मानता है.

आरबीआई गर्वनर को मजबूर होकर इस्‍तीफा देना पड़ा

गहलोत ने आरबीआई गर्वनर के इस्‍तीफे को भी अपनी बात में जोड़ते हुए क‍हा कि आने वाले वक्‍त में आप और परिवर्तन देखेंगे. कर्नाटक में उनकी सरकार नहीं बन पाई. आज देश में जिस तरह का माहौल है.  गहलोत ने कहा कि देश की संवैधाननिक संस्‍थाएं बर्बाद हो रही हैं. आरबीआई गर्वनर का इस्‍तीफा कोई मामूली घटना नहीं है.पूर्व आरबीआई गर्वनर रघुराम राजन ने खुद ये कहा है कि आरबीआई गर्वनर कोई क्‍लर्क नहीं है जो खुद जाकर इस्‍तीफा दे दे. जब तक सरकार की तरफ से ऐसाकोई माहौल न बनाया गया हो. उन्‍हें मजबूर होकर इस्‍तीफा देना पड़ा. ये शायद 25-30 साल बाद पहली घटना है. 

देश में ज‍िस तरह शासन, उससे लोग दुखी

राहुल के चुनावी तरीकों की तारीफ करते हुए गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी ने जनता से जुड़े मुद्दों को इन चुनावों में उठाया. नौजवानों को नौकरी नहीं मिल रही. करप्‍शन को मुद्दे पर अमित शाह के बेटे को घेरा. महंगाई का मुद्दा उठाया. तेल की अंतरर्राष्‍ट्रीय कीमतेंकम हो रही हैं, यहां बढ़ती जा रही हैं. चुनाव आए तो कम कर दीं. ये तमाम लोग जिस तरह से देश में शासन कर रहे हैं, उनसे लोग दुखी हैं. कोई बोल नहीं रहा, कोई हिम्‍मत नहीं कर रहा. लेकिन लोग आगे इस पर जरूर बात करेंगे.

लोग ये मानने लगे हैं कि अच्‍छे दिन नहीं आए

ये चुनाव परिणाम किस बात का संकेत हैं, इस पर गहलोत ने कहा कि अभी जो माहौल बना है वह संकेत है कि आगे लोकसभा चुनाव में क्‍या होने वाला है.अभी तक इनका एक आभामंडल बन गया था लेकिन अब लोग ये मानने लगे हैं कि अच्‍छे दिन नहीं आए. न 2 करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष नौकरीमिली . ब्‍लैकमनी एक भी नहीं आई. ये हालात सबके सामने है. जिसका परिणाम इस विधानसभा चुनाव में नजर आ रहा है और आगे भी आएगा.

नरेंद्र मोदी की हार है या वसुंधरा राजे की?

अशोक गहलोत से जब पूछा गया कि ये नरेंद्र मोदी की हार है या वसुंधरा राजे की तो जवाब में गहलोत बोले कि अभी परिणाम पूरा आने दीजिए, उसके बाद बैठकर इस बारे में बात करेंगे.

डेमोक्रेसी कहती है सबको मिलाकर चलो

जब गहलोत से सवाल पूछा गया कि निर्दलीय कह रहे हैं कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो वे उनके साथ होंगे. इस पर जवाब देते हुए गहलोत ने कहा कि डेमोक्रेसी कहती है सबको मिलाकर चलो. परिणाम आने दीजिए, फिर इस पर बात करेंगे.

ऐसा है राजस्‍थान में चुनाव पर‍िणाम का रुझान

राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम के रूझान सभी 199 सीटों पर आ गए हैं, जिसमें कांग्रेस सरकार बनाती नजर आ रही है. प्रदेश में 200 विधानसभा सीटों में 199 सीटों पर वोटिंग हुई है और 2274 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं.

मौजूदा चुनाव नतीजों से एक बात ये भी स्पष्ट होती दिख रही है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जिस गुस्से की बात की जा रही थी और एग्जिट पोल में कांग्रेस द्वारा क्लीन स्वीप करने के जो आंकड़े सामने आ रहे थे, असल नतीजे उससे उलट आ रहे हैं. राजस्थान में चुनावप्रचार के दौरान भले ही ‘मोदी से बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं’ जैसे नारों की गूंज सुनाई दी हो, लेकिन बीजेपी के प्रदर्शन को सम्मानजनक माना जा रहा है.

दरअसल, 2003 और 2008 और 2013 के चुनावी नतीजों को देखा जाए हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीटों का अंतर दिलचस्प रहा है. 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 120 सीटें मिली थीं और वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकारबनी थी. राजे ने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी. इसके बाद 2008 के चुनाव हुए तो कांग्रेस को 96 सीटें मिलीं और बीजेपी 78 सीटों के साथ बहुमत से 23 सीट दूर रह गई.

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