देश भर में आयोजित रामलीलाओं में खलनायक की भूमिका में नजर आने वाला रावण उत्तर प्रदेश में इटावा के जसवंतनगर में संकट मोचक की भूमिका में पूजा जाता है। यहां रामलीला के समापन में रावण के पुतले को दहन करने के बजाय उसकी लकड़ियों को घर ले जा कर रखा जाता है ताकि साल भर उनके घर में विघ्न बाधा उत्पन्न न हो सके।

जसवंतनगर की रामलीला पर पुस्तक लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार वेद्रवत गुप्ता ने यूनीवातार् को बताया कि यहां रावण की ना केवल पूजा की जाती है बल्कि पूरे शहर भर मे रावण की आरती उतारी जाती है सिर्फ। इतना ही नही रावण के पुतले को जलाया नहीं जाता है । लोग पुतले की लकड़ियों को अपने अपने घरो मे ले जा करके रखते है ताकि वे साल भर हर संकट से दूर रह सके । कुल मिला कर रावण यहां संकट मोचक की भूमिका निभाता चला आया है। जसवंतनगर मे आज तक रामलीला के वक्त भारी हुजुम के बावजूद भी कोई फसाद ना होना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
साल 2010 मे यूनेस्को की ओर से रामलीलाओ के बारे जारी की गई रिपोर्ट मे इस विलक्षण रामलीला को जगह दी जा चुकी है। करीब 164 साल से हर साल मनायी जाने वाली इस रामलीला का आयोजन दक्षिण भारतीय तर्ज पर मुखौटा लगाकर खुले मैदान मे किया जाता है । त्रिडिनाड की शोधाथीर् इंद्रानी रामप्रसाद करीब 4०० से अधिक रामलीलाओ पर शोध कर चुकी है लेकिन उनको जसवंतनगर जैसी होने वाली रामलीला कही पर भी देखने को नही मिली है।
यहां की रामलीला में रावण की आरती उतारी जाती है और उसकी पूजा होती है। हालांकि ये परंपरा दक्षिण भारत की है लेकिन फिर भी उत्तर भारत के कस्बे जसवंतनगर ने इसे खुद में क्यों समेटा हुआ है ये अपने आप में ही एक अनोखा प्रश्न है। जानकार बताते है कि रामलीला की शुरुआत यहाँ 1855 मे हुई थी लेकिन 1857 के ग़दर ने इसको रोका फिर 1859 से यह लगातार जारी है।
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