एक तरफ एससी-एसटी का आरक्षण आने वाले 10 सालों तक बढ़ा दिया गया है तो वही, सामान्य वर्ग के गरीब बच्चों को भी 10 प्रतिशत आरक्षण मिल चुका है। एक तरफ हमारे व्यापारी वर्ग के लिए राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड बनाया गया है, तो वही पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया है।
युवाओं का विकास, उनका रोजगार, गरीबों, दलितों का, पिछड़ों का विकास, एनडीए सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। हमने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के मंत्र पर चलते हुए बिना भेदभाव, सभी को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया है।
देश में चौतरफा हो रहे विकास के बीच, आप सभी को उन ताकतों से भी सावधान रहना है, जो अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए देशहित के खिलाफ जाने से भी बाज नहीं आतीं। ये वो लोग हैं जो देश के वीर जवानों के बलिदान में भी अपना फायदा देखने लगते हैं।
देश के वीर जवानों, वीर बेटे-बेटियों के शौर्य और शूरता पर बिहार को, संपूर्ण देश को रत्तीभर भी संदेह नहीं रहा। लेकिन सत्ता और स्वार्थ की राजनीति करने वालों ने खूब भ्रम फैलाने की कोशिश की और आज वही लोग बिहार के लोगों के सामने आकर अपने लिए वोट मांग रहे हैं।
2-3 दिन पहले पड़ोसी देश ने पुलवामा हमले की सच्चाई को स्वीकारा है। इस सच्चाई ने उन लोगों के चेहरे से नकाब हटा दिया, जो हमले के बाद अफवाएं फैला रहे थे।
एक समय था जब पासपोर्ट बनवाने के लिए पटना जाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था। बीते 3-4 सालों में ही बिहार में 30 से ज्यादा पासपोर्ट सेवा केंद्र खोले गए हैं, जिसमें से एक केंद्र गोपालगंज में भी खोला गया है।
ये भी सच है कि बिहार के हजारों युवाओं का अलग-अलग कंपीटिशन की कोचिंग में, तैयारी में ऊर्जा, समय और पैसा दोनों लगता है। अब रेलवे, बैंकिंग और ऐसी अनेक सरकारी भर्तियों के लिए एक ही एंट्रेंस एग्जाम की व्यवस्था की जा रही है।
बिहार की मिट्टी में हमेशा सामर्थ्य रहा है। हाल में ही बिहार की मिट्टी के सपूत, गोपालगंज से रिश्ता रखने वाले, वैवेल रामकलावन जी सेशेल्स देश के राष्ट्रपति चुने गए हैं। आज उनके ही क्षेत्र में आकर इस क्षेत्र के लोगों की तरफ से, भारत की तरफ से मैं उन्हें फिर बधाई देता हूं।
रघुवंश बाबू, जिन्होंने हमेशा सोशलिस्ट मूल्यों को आगे बढ़ाया, अपना पूरा जीवन बिहार की सेवा में लगा दिया। उनको कैसे अपमानित किया गया, ये पूरे बिहार ने देखा है
बिहार के नौजवान याद करें कि बचपन में उनकी मां कहती थीं- घर के भीतर ही रहो, बाहर मत निकलना, बाहर ‘लकड़सुंघवा’ घूम रहा है। बच्चों की माताएं उन्हें लकड़सुंघवा से क्यों डराती थीं? उन्हें डर था अपहरण करने वालों से, किडनैपिंग करने वालों से।