फिल्म ‘हक’ एक गंभीर कोर्टरूम ड्रामा है, जिसमें इमरान हाशमी और यामी गौतम धर मुख्य भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म का निर्देशन सुपर्ण एस. वर्मा ने किया है, जो पहले द फैमिली मैन जैसी वेब सीरीज बना चुके हैं। हक का मतलब होता है अधिकार। यह फिल्म एक ऐसी औरत की कहानी है जो अपने हक और सम्मान के लिए समाज और कानून से लड़ती है।
कहानी
कहानी 1980–90 के समय की है, जब देश में महिलाओं के अधिकारों और तलाक के कानूनों पर बहुत चर्चा हो रही थी। यामी गौतम ने शाजिया बानो नाम की एक मुस्लिम महिला का किरदार निभाया है। शाजिया का पति अब्बास खान (इमरान हाशमी) उसे छोड़ देता है। अब्बास धर्म का सहारा लेकर अपने गलत कामों को सही बताने की कोशिश करता है। वह दूसरी शादी कर लेता है और तलाक के नियमों का गलत इस्तेमाल करता है। शाजिया अपने गुजारे और इज्जत के हक के लिए अदालत जाती है। उसकी यह लड़ाई सिर्फ अपने पति से नहीं, बल्कि समाज और पुराने सोच से भी है।
अभिनय
यामी गौतम ने अपने किरदार को बहुत सच्चाई से निभाया है। उन्होंने एक पीड़ित लेकिन हिम्मती महिला को बखूबी दिखाया है। कोर्ट के कई सीन में उनका आत्मविश्वास और जज्बात बहुत असर डालते हैं। इमरान हाशमी ने दो किरदार निभाए हैं – एक पति का और दूसरा वकील का। दोनों रोल बहुत अच्छे ढंग से निभाए हैं। उनका सधा हुआ अभिनय फिल्म का सबसे बड़ा सरप्राइज है ..हर संवाद में गहराई और असर महसूस होता है।
निर्देशन
निर्देशक सुपर्ण एस. वर्मा ने इस गंभीर विषय को बहुत सादगी और समझदारी से दिखाया है। फिल्म की गति थोड़ी धीमी है, लेकिन संवाद और अदालत के सीन दिलचस्प हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक और कैमरे का काम फिल्म के माहौल को मजबूत बनाता है। फिल्म का संदेश साफ है- हक किसी का एहसान नहीं, बल्कि हर इंसान का अधिकार है। यही बात इस कहानी की असली ताकत है। कहीं थोड़ी सी कमी रह गई है। फिल्म एक या दो जगह पर भटकती है लेकिन फिर वापस पटरी पर लौट जाती है।
देखें या नहीं?
हक एक सोचने पर मजबूर करने वाली और दिल को छू जाने वाली फिल्म है। अगर आपको सामाजिक मुद्दों पर बनी और सशक्त महिला किरदारों वाली फिल्में पसंद हैं, तो यह जरूर देखनी चाहिए। लेकिन अगर आप हल्की-फुल्की फिल्में देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म थोड़ी गंभीर लग सकती है।
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