यहां आज भी चलता है 80 साल पुराना चरखा, 83 साल के तिलक राज काटते हैं सूत

बूढ़ी आंखें, कमजोर होती नजर, लेकिन जब चलते हैं चरखे पर हाथ तो देशभक्त युवा के जैसी चमक चेहरे पर आती है नजर। शुभम अपार्टमेंट, कैलाश पुरी निवासी 83 वर्ष के तिलकराज भाटिया, उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद भी अपने पिता के संस्कारों की पौध को जीवंत रखे हुए हैं। देशभक्ति का जज्बा और गांधीवादी विचारधारा का जो बीज उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय देवी लाल ने मन में बोया था, वो आज भी पल्लवित है।बूढ़ी आंखें, कमजोर होती नजर, लेकिन जब चलते हैं चरखे पर हाथ तो देशभक्त युवा के जैसी चमक चेहरे पर आती है नजर। शुभम अपार्टमेंट, कैलाश पुरी निवासी 83 वर्ष के तिलकराज भाटिया, उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद भी अपने पिता के संस्कारों की पौध को जीवंत रखे हुए हैं। देशभक्ति का जज्बा और गांधीवादी विचारधारा का जो बीज उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय देवी लाल ने मन में बोया था, वो आज भी पल्लवित है। 80 वर्ष पूर्व तिलकराज के पिता घर में स्‍वदेशी आंदोलन के चलते चरखा लेकर आए थे। तीन साल के मन पर चरखा और स्‍वदेशी आंदोलन का ऐसा असर हुआ कि आज तक वे चरखे पर सूत कातते आ रहे हैं। आज भी गांधी जयंती और उनकी पुण्य तिथि पर वे चरखा जरूर चलाते हैं। तिलकराज के शब्दों में चरखा चलाकर वो बापू को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। दिवस विशेष पर चरखा चलाना और सूत काटना मन को सुकून देता है। चरखा चलाने के दौरान तिलकराज राम धुन गुनगुनाते रहते हैं।   पिता से मिले संस्कारों को आगे ले जा रहे तिलकराज   नगर आयुक्त की नाम पट्टिका फेंकी, लगे नगर निगम में मुर्दाबाद के नारे, जानें क्या थी वजह यह भी पढ़ें तिलकराज के पुत्र हितेश भाटिया के अनुसार उनके दादा देवी लाल भाटिया महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में कूदे थे। 1889 में पंजाब के जिला सियालकोट(अब पाकिस्तान में) में जन्म हुआ था। 1935 में महात्मा गांधी के आंदोलनों से प्रभावित होकर उन्होंने आगरा कॉलेज में तिरंगा फहराया था। इसके बाद वे लगातार आजादी के विभिन्न आंदोलनों का हिस्सा बनते रहे। पंजाब और आगरा के बीच आजादी की अलख जगाने में उनका विशेष योगदान रहा। 1947 में जब देश आजाद हुआ तब उन्होंने उसी आगरा कॉलेज में अपने निजी पैसे से कैंटीन शुरू की। बालक तिलकराज अपने पिता की देश भक्ति को बचपन से ही देखते हुए बड़े हो रहे थे। उन्हें विरासत में पिता की गांधीवादी विचारधारा, चरखा और कैंटीन मिली। जिसे आज तक उन्होंने सहेज कर रखा हुआ है।   हत्या और लूट करने वाले गिरोह का सरगना निकला पूर्व फौजी, जानने के लिए पढ़ें पूरा मामला यह भी पढ़ें पिता के आदर्शों पर चलकर भाइयों को बनाया काबिल  पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण तिलकराज पढ़ न सके लेकिन अपने भाइयों को उन्होंने पिता की सीख देते हुए ही बड़ा किया था। उनके समर्पण के ही कारण उनके एक भाई कर्नल यशपाल भाटिया राष्ट्रपति पदक से सम्मानित हुए और दूसरे भाई सुरेंद्र भाटिया मायानगरी में स्थापित नाम हैं।   चुनाव आयोग ने लिया ऐसा फैसला की विपक्ष नहीं उठा सकेगा अब सवाल, जाने क्यों यह भी पढ़ें हाथ से काते सूत का बनवाना चाहते हैं कुर्ता  तिलकराज अपने पिता के चरखे को 80 वर्षों से सहेज रहे हैं। उनकी इच्छा है कि उनके हाथ से काते हुए सूत का कुर्ता तैयार हो, जिसे वे अपने पिता और महात्मा गांधी को समर्पित करना चाहते हैं।

80 वर्ष पूर्व तिलकराज के पिता घर में स्‍वदेशी आंदोलन के चलते चरखा लेकर आए थे। तीन साल के मन पर चरखा और स्‍वदेशी आंदोलन का ऐसा असर हुआ कि आज तक वे चरखे पर सूत कातते आ रहे हैं। आज भी गांधी जयंती और उनकी पुण्य तिथि पर वे चरखा जरूर चलाते हैं। तिलकराज के शब्दों में चरखा चलाकर वो बापू को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। दिवस विशेष पर चरखा चलाना और सूत काटना मन को सुकून देता है। चरखा चलाने के दौरान तिलकराज राम धुन गुनगुनाते रहते हैं।

पिता से मिले संस्कारों को आगे ले जा रहे तिलकराज

तिलकराज के पुत्र हितेश भाटिया के अनुसार उनके दादा देवी लाल भाटिया महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में कूदे थे। 1889 में पंजाब के जिला सियालकोट(अब पाकिस्तान में) में जन्म हुआ था। 1935 में महात्मा गांधी के आंदोलनों से प्रभावित होकर उन्होंने आगरा कॉलेज में तिरंगा फहराया था। इसके बाद वे लगातार आजादी के विभिन्न आंदोलनों का हिस्सा बनते रहे। पंजाब और आगरा के बीच आजादी की अलख जगाने में उनका विशेष योगदान रहा। 1947 में जब देश आजाद हुआ तब उन्होंने उसी आगरा कॉलेज में अपने निजी पैसे से कैंटीन शुरू की। बालक तिलकराज अपने पिता की देश भक्ति को बचपन से ही देखते हुए बड़े हो रहे थे। उन्हें विरासत में पिता की गांधीवादी विचारधारा, चरखा और कैंटीन मिली। जिसे आज तक उन्होंने सहेज कर रखा हुआ है।

पिता के आदर्शों पर चलकर भाइयों को बनाया काबिल

पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण तिलकराज पढ़ न सके लेकिन अपने भाइयों को उन्होंने पिता की सीख देते हुए ही बड़ा किया था। उनके समर्पण के ही कारण उनके एक भाई कर्नल यशपाल भाटिया राष्ट्रपति पदक से सम्मानित हुए और दूसरे भाई सुरेंद्र भाटिया मायानगरी में स्थापित नाम हैं।

हाथ से काते सूत का बनवाना चाहते हैं कुर्ता

तिलकराज अपने पिता के चरखे को 80 वर्षों से सहेज रहे हैं। उनकी इच्छा है कि उनके हाथ से काते हुए सूत का कुर्ता तैयार हो, जिसे वे अपने पिता और महात्मा गांधी को समर्पित करना चाहते हैं।

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