यदि बेटी माता-पिता के पास है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसे अवैध हिरासत मान लिया जाए : सुप्रीम कोर्ट

केरल के एक कथित आध्यात्मिक गुरु की अपनी लिव-इन पार्टनर को उसके माता-पिता की हिरासत से आजाद कराने संबंधी याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई करने से मना कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यदि कोई अपने माता-पिता के पास है तो उसे अवैध हिरासत नहीं कहा जा सकता है। अदालत ने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज करते हुए उन्हें उच्च न्यायालय का रुख करने की सलाह दी है।

इससे पहले केरल उच्च न्यायालय ने आध्यात्मिक गुरु की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि लड़की की मानसिक हालत सही नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि उच्च न्यायालय ने यह गलत फैसला लिया है कि लड़की की मानसिक स्थिति कमजोर है।

पेशे से डॉक्टर 52 साल की लड़की के आध्यात्मिक गुरु ने केरल उच्च न्यायालय को बताया कि 42 साल की उम्र में वह पत्नी और दो बेटियों से अलग हो गया था। इसके अलावा उसने सांसारिक जीवन भी त्याग दिया था। उसने 21 साल की लड़की को अपनी लिव-इन पार्टनर और योग शिष्या बताते हुए उसके माता-पिता पर उसे अवैध तौर से हिरासत में रखने का आरोप लगाया था। उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि महिला कमजोर मानसिक स्थिति की है। पुलिस द्वारा जांच में पता चला है कि याचिकाकर्ता भरोसेमंद नहीं है। उसने इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कस्टडी और हिरासत में बहुत बड़ा अंतर है। यदि बेटी माता-पिता के पास है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसे अवैध हिरासत मान लिया जाए। लड़की की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। जहां तक लड़की की इच्छा व्यक्त करने की बात है तो कमजोर मानसिक स्थिति वाले व्यक्ति को खुद के लिए फैसला लेने की आजादी नहीं होती है। अदालत को लड़की की धारणा पर शक है। मानसिक स्थिति ठीक न होने से व्यक्ति अलग-अलग तरह की बातें करता है। ऐसे में उसकी बातों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

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