भारतीय नौसेना की छह पनडुब्बियों के निर्माण के लिए रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) ने भारतीय सामरिक भागीदार (एसपी) के तौर पर मंगलवार को मझगांव डॉकयार्ड्स लिमिटेड (एमडीएल) और लासर्न एंड टूब्रो (एलएंडटी) के चयन को हरी झंडी दिखा दी, जबकि 50 हजार करोड़ रुपये के इस पी-75आई प्रोजेक्ट के लिए अडानी डिफेंस, एयरोस्पेस और हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड के दावे को हाई पावर कमेटी ने तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया।
इस प्रक्रिया में अडानी डिफेंस को शामिल किए जाने के चलते केंद्र सरकार को लगातार विपक्ष के तीखे हमले का सामना करना पड़ रहा था। विपक्ष का आरोप था कि पनडुब्बी निर्माण का कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद सरकार से नजदीकियों के चलते अडानी डिफेंस को यह मौका दिया जा रहा है। डीएसी ने ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देते हुए स्वदेशी निर्मित इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम समेत करीब 5100 करोड़ रुपये के उपकरणों की खरीद को भी मंजूरी दी है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई डीएसी बैठक के दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बिपिन रावत भी मौजूद थे। देश के पहले सीडीएस के नियुक्ति के बाद यह डीएसी की पहली बैठक थी।
बैठक के बाद रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, नौसेना के पी-75आई प्रोजेक्ट के लिए संभावित मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम्स) को हरी झंडी दिखा दी गई है।
ये ओईएम्स ही भारतीय सामरिक भागीदारों (एसपीज) के साथ मिलकर स्वदेश में एडवांस तकनीक वाली छह पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण करेंगी।
ओईएम के तौर पर रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (रूस), नेवल ग्रुप (फ्रांस), दाएवू शिपबिल्डिंग एंड मैरीन इंजीनियरिंग (दक्षिण कोरिया), टीकेएमएस (जर्मनी) और नवांतिया (स्पेन) को चुना गया है, जबकि भारतीय सामरिक भागीदारों में एमडीएल और एलएंडटी को शामिल किया गया है।
अब अगले छह सप्ताह में रक्षा मंत्रालय एमडीएल और एलएंडटी को रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी करेगा। आरएफपी जारी होने के बाद 3-4 महीने के अंदर दोनों कंपनियों को अपनी बोली जमा करानी होगी। इसके लिए दोनों कंपनियों को चुनी गई पांच ओईएम में से किसी एक को अपने विदेशी साझेदार के तौर पर चुनना होगा।
बता दें कि भारतीय नौसेना ने इन पनडुब्बियों के लिए निर्माण के लिए 2017 के मध्य में रिक्वेस्ट ऑफ इंफारमेशन (आरएफआई) मांगने के बाद विदेशी मूल कंपनियों के चयन के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआई) जून 2019 में जारी किया गया था।
इस बीच यह प्रक्रिया भारतीय भागीदारों के चयन के मापदंड तय करने के लिए अटकी रही थी। विदेशी कंपनियों के ईओआई पिछले साल सितंबर में खोलकर प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया था।
रक्षा मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी में कहा गया कि थल सेना के लिए खरीदे जा रहे परिष्कृत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम्स को रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने डिजाइन किया है, जबकि इसका निर्माण भारतीय इंडस्ट्री में ही स्थानीय स्तर पर किया गया है।
ये सिस्टम सेना को रेगिस्तानी व मैदानी इलाके में तैनात किए जाएंगे। इसके अलावा डीएसी ने डीआरडीओ की तरफ से स्वदेशी तकनीक से विकसित की गई ट्रॉल असेंबली के प्रोटोटाइप के परीक्षण को भी मंजूरी दी है। यह असेंबली रूस निर्मित टी-72 व टी-90 टैंकों को दुश्मन के क्षेत्र में लैंडमाइंस के विस्फोट से बचाने का काम करेगी।