केंद्र सरकार की एक जांच एजेंसी को पता चला है कि जम्मू कश्मीर के रोशनी एक्ट में आरोपी बन रहे मौजूदा एवं पूर्व नौकरशाह, अब बेचैन होने लगे हैं। उन्हें जेल जाने का डर सता रहा है। इसी वजह से वे नौकरशाह, अब ‘गुपकार’ वालों से ही बचाव का रास्ता पूछ रहे हैं।
खुफिया एवं वीवीआईपी मामलों में केंद्र सरकार को रिपोर्ट करने वाली एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक, ऐसे कई अफसरों ने ‘गुपकार घोषणा’ करने वाले सियासी नेताओं से मुलाकात की है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस पार्टी से जुड़े एक बड़े नेता बैठक में शामिल बताए गए हैं।
सूत्रों का यह भी कहना है कि दो दिन पहले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को हिरासत में लेने की जो खबरें मीडिया में आई थी, उनके पीछे गुपकार वालों की गुप्त बैठकें बड़ा कारण मानी गई हैं। हालांकि बाद में कहा गया कि महबूबा या उनके परिवार के किसी सदस्य को हिरासत में नहीं लिया गया है।
बता दें कि पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला सहित कई मंत्रियों एवं नौकरशाहों पर रोशनी जमीन घोटाले की आंच आने लगी है।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने रोशनी एक्ट के तहत वन भूमि पर कब्जा करने के मामले में एक और एफआईआर दर्ज की है। इसमें जम्मू कश्मीर के पूर्व मंत्री ताज मोहिउद्दीन का नाम प्रमुखता से शामिल किया गया है। मोहिउद्दीन के साथ शोपियां के पूर्व उपायुक्त मोहम्मद रमजान ठाकुर, तत्कालीन अतिरिक्त उपायुक्त मोहम्मद यूसुफ जरगर, राजस्व विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त उपायुक्त हफिजुल्ला और तत्कालीन तहसीलदार गुलाम हसन राठेर के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है।
इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने अपने सरकारी पद का दुरुपयोग कर वन विभाग की जमीन पर कब्जा होने दिया। सीबीआई की एफआईआर में लिखा है कि चोक लालू शाह तहसील में तिलक राज और हेमराज दो सगे भाइयों की जमीन के दस्तावेज बदल दिए गए। ये दोनों भाई, जिनमें एक सीनियर सिटीजन रहे हैं, इनके नाम की जमीन को पूर्व मंत्री ताज मोहिउद्दीन की तीन बेटियों शबनम ताज, नौशीन ताज और अर्शी ताज के नाम कर दिया गया। दोनों भाई चिल्लाते रहे, मगर किसी ने उनकी नहीं सुनी.
वन विभाग ने जब इस मामले पर आपत्ति जताई तो उसे दरकिनार कर दिया गया। विभाग ने तर्क दिया था कि जम्मू कश्मीर राज्य भूमि (मालिकाना हक सौंपने) कानून या रोशनी एक्ट के तहत ये गलत है। इस तरह से वन विभाग की जमीन को नियमित नहीं किया जा सकता। इसके बाद संभागीय वन अधिकारी ने रोशनी एक्ट के तहत वन भूमि के मालिकाना हक स्थानांतरण को लेकर आपत्ति दर्ज करा दी।
मंत्री के प्रभाव में आकर नौकरशाहों ने उक्त फाइल को क्लियर कर दिया। सभी आपत्तियां, दावे और शिकायतें किनारे कर दी गई। पूर्व आईएएस अफसर मोहम्मद शफी पंडित तो रोशनी एक्ट खत्म करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चले गए हैं। इसी तरह से दर्जनों सिविल अधिकारी परेशान हैं।
जांच एजेंसी के एक अधिकारी के मुताबिक, रोशनी एक्ट में अपने पद का दुरुपयोग करने वाले नौकरशाहों और उनके सहायकों की सूची अब लंबी होने जा रही है। अब इसमें राजस्व महकमे के सहायक से लेकर तहसीलदार तक को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।
जांच के दौरान पूछा जाएगा कि किस नौकरशाह ने अपने पद का दुरुपयोग कर और अनधिकृत तौर से रोशनी एक्ट की फाइलों को क्लियरेंस दी थी। वन विभाग की जमीनों पर कब्जा कराने के लिए किसने दबाव डाला था, इन सवालों का जवाब सीबीआई की पूछताछ में बाहर आने की उम्मीद है।