सनातन संस्कृति के धर्मशास्त्रों के अनुसार मानव जीवन को सोलह संस्कारों में पिरोया गया है। इसके अंतगर्त पहला संस्कार गर्भाधान संस्कार है जिसके कारण मानव जीवन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इसी तरह दूसरे सभी संस्कारों को बढ़ती उम्र के मुताबिक पूरा करता हुआ मानव जीवन सोलहवे संस्कार यानी अंतिम संस्कार की ओर बढ़ता है और आत्मा के शरीर त्याग करने के साथ ही अंतिम संस्कार किया जाता है।
लेकिन शरीर त्यागने के बाद इंसान को विधिपूर्वक अंतिम विदाई दी जाती है। इसमें अंतर्गत मानव का दाह संस्कार किया जाता है या नश्वर शरीर को पंचतत्व में विलिन किया जाता है। अंतिम संस्कार के शास्त्रों में विधिपूर्वक नियम दिए गए हैं उन नियमों का पालन करते हुए दाह संस्कार करने से मानव सभी तरह के मोहमाया और जीवन के जंजाल से मुक्त होकर कैलाशवासी बन जाता है।
धर्मशास्त्र गरुड़ पुराण के अनुसार मानव की मृत्यु निश्चित है और यह किसी भी समय हो सकती है यह परमपिता परमेश्वर के हाथ में है, लेकिन उसका अंतिम संस्कार या अंतिम विदाई केवल दिन के समय यानी सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही की जा सकती है। सूर्यास्त के बाद यानी रात में मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के लिए सूर्योदय का इंतजार करना चाहिए।
गरुड़ पुराण में रात में अंतिम संस्कार से होने वाले अशुभ प्रभाव का वर्णन किया गया है। यदि किसी मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद किया जाता है तो मरने वाले को परलोक में काफी तकलिफों का सामना करना पड़ता है और अगले जन्म में उसके शरीर के विभिन्न अंगों में खराबी हो सकती है या किसी तरह का कोई दोष हो सकता है। इसी वजह से सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार उचित नहीं माना गया है। मृतात्मा के मोक्ष के लिए और उसकी मुक्ति के लिए दिन में अंतिम संस्कार का विधान है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार दिन ढलने के साथ ही स्वर्ग के कपाट बंद हो जाते हैं और नर्क के द्वार खुल जाते हैं। इसलिए सूर्योदय के रहते अंतिम संस्कार करने पर मृतात्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और रात के समय अंतिम संस्कार करने पर नर्क में जाना पड़ता है।
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि सूर्यास्त के बाद यदि किसी का देहवसान होता है तो मृत शरीर को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि ऐसा कहा गया है कि मृत व्यक्ति की आत्मा वहीं पर भटकती रहती है और अपनों स्वजनों के नजदीक रहकर उनको देखती रहती है।
यह भी कहा जाता है कि मौत के बाद शरीर से आत्मा प्रस्थान कर जाती है और मृतक के खाली शरीर में कोई बुरी आत्मा प्रवेश न कर ले इसलिए मृत शरीर को रात में अकेला नहीं छोड़ा जाता है।
और धर्म अनुसार मृत शरीर को तुलसी के पौधे के पास रखने का भी प्रावधान है। इस तरह से शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार करने पर आत्मा परमात्मा में विलिन होकर देवलोक में स्थान पाती है।