देशभर में लोकसभा चुनाव में दो महीने पहले संपन्न हुए है. इसमे कांग्रेस की झोली में सबसे अधिक सीटें आई थी. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह इन दिनों बड़े बदले-बदले से नजर आ रहे हैं.चुनावी नतीजों के एकदम बाद से आई बदलाव की यह बयार उनकी कार्यशैली में अब हर फ्रंट पर देखने को मिल रही है.अमरिंदर सिंह का असली व्यक्तित्व, जो पिछले दो वषों में कहीं गुम या दुबक सा गया लगता था, अचानक आम चुनावों में देशभर में कांग्रेस को मिली शिकस्त और पंजाब में ‘कैप्टन’ की कांग्रेस की बढ़त से लौट आया लगता है. आइए जानते है पूरी जानकारी विस्तार से
अब अंतिम फैसला चाहे उनके और गांधी परिवार के करीबी नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रही दो साल पुरानी राजनीतिक ‘शह और मात’ का हो या फिर पंजाब में गवर्नेंस पर बुरी तरह से हावी हुई अफसरशाही और नशे जैसे अन्य गंभीर मसलों पर कड़े फैसलों का हो, अमरिंदर सिंह अपनी असली कमांड में दो महीने पहले ही आए दिखते हैं.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अपने राजनीतिक सफर में लगभग ढाई साल पहले जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दूसरी बार मुख्यमंत्री बन सत्ता संभाली तो उस समय हर व्यक्ति के जेहन में अमरिंदर सिंह की ‘शाही दबंगई’ से राज करने वाले उस ‘बेबाक’ नेता की छवि थी जिसने अमरिंदर सिंह को पिछले कार्यकाल (2002-07) में ‘पाणिया दा राखा’ ( वॉटर सेवियर) का रुतबा दिलाया. सूबे के लोगों और उनके मसलों पर बेबाकी से बोलने वाले नेता के रूप में पहचाने जाने वाले अमरिंदर सिंह से प्रदेश की जनता इस कदर आस लगाए बैठी थी मानो इस बार बतौर मुख्यमंत्री केवल ‘वाटर सेवियर’ (रक्षक) नहीं, बल्कि पंजाब , पंजाबी व पंजाबियत के रक्षक बन कर उभरेंगे.