मात्र एक ही दिन खुलता है भगवान कार्तिकेय का मंदिर, होती है मन्नत पूरी

जीवाजीगंज मार्ग स्थित भगवान कार्तिकेय के मंदिर के पट गुरुवार-शुक्रवार की दरम्यानी रात 12 बजे खोले गए। पुजारी ने प्रतिमा का अभिषेक कर श्रंगार किया। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा (शुक्रवार) के दिन सुबह 4 बजे भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर के पट खोले गए। दर्शनों के लिए भक्तों के पहुंचने का सिलसिला सुबह से ही शुरू हो गया।

भक्त यहां प्रसाद चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। शुक्रवार-शनिवार की रात 4 बजे पुजारी पूजा अर्चना कर कार्तिकेय भगवान की प्रतिमा को कपड़े के खोल से ढंककर दरवाजे पर ताला लगा देंगे। इसके बाद यह दरवाजा अगले वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर ही खुलेगा।

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जीवाजीगंज स्थित भगवान कार्तिकेय के मंदिर में ही गंगा यमुना सरस्वती का भी मंदिर है। पुजारी परिवार का दावा है कि ग्वालियर का एकमात्र मंदिर है, जहां तीनों एक साथ विराजमान हैं। पुजारी पंडित जमुना प्रसाद शर्मा के मुताबिक भक्तों के अलावा कई लोग गंभीर रोगियों को लेकर भी आते हैं, लेकिन मंदिर के पट किसी के लिए नहीं खोले जाते हैं। लोग मंदिर में बाहर से दर्शन कर माथा टेककर चले जाते हैं और जब मन्नत पूरी होती है तो कार्तिक पूर्णिमा पर दर्शनों के लिए आते हैं। इसी वजह से कार्तिक पूर्णिमा पर सुबह से मंदिर पर भक्तों की भीड़ उमड़ना शुरू हो जाती है।

400 साल पुराना मंदिर

भगवान कार्तिकेय का यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है। पुजारी परिवार के मुताबिक साधू संतों के द्वारा प्रतिमा की स्थापना की गई थी। यहां कार्तिकेय भगवान की छह मुख वाली पत्थर की प्रतिमा है, इसमें वह मोर पर सवार हैं। मंदिर खुलता रात 12 बजे है, लेकिन बंद तब होता है जब सभी भक्त दर्शन कर चुके होते हैं। पुजारी पंडित जमुना प्रसाद के मुताबिक भक्तों की भीड़ अधिक होने के कारण मंदिर सुबह 4 बजे ही बंद हो पाता है।

केवल जन्मदिन वाले दिन दर्शन फलदायी

धार्मिक मान्यता के अनुसार शिव पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय नाराज होकर अज्ञात स्थान पर तपस्या करने चले गए थे। जब शिव पार्वती उन्हे मनाने पहुंचे तो उन्होंने श्राप दिया कि जो स्त्री उनके दर्शन करेगी वह सात जन्म तक विधवा होगी और जो पुरूष दर्शन करेगा वह सात जन्म तक नर्क भोगेगा। बाद में जब माता पार्वती ने उनसे कहा कि ऐसा कोई दिन बताएं जब आपके दर्शनों का भक्तों को लाभ मिल सके। गुस्सा शांत होने पर भगवान कार्तिकेय ने कहा कि जो भक्त कार्तिक पूर्णिमा पर उनके दर्शन करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। गौरतलब है कि इसी दिन भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था।

कपड़े से ढंकी जाती है प्रतिमा

कार्तिक पूर्णिमा पर भक्तों के दर्शन करने के बाद पुजारी परिवार भगवान की पूजा अर्चना कर प्रसाद का भोग लगाता है। इसके बाद दीप प्रज्वलित किया जाता है। फिर प्रतिमा को कपड़े के खोल से पूरी तरह ढंककर दरवाजे पर ताला लगा दिया जाता है। जो प्रतिवर्ष केवल कार्तिक पूर्णिमा पर ही खुलता है।

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