माता भगवती की आराधना, संकल्प, साधना और सिद्धि का दिव्य समय है। देवी भागवत के अनुसार देवी ही ब्रह्मा, विष्णु व महेश के रुप में सुष्टि का सृजन, पालन और संहार करती है। भगवान महादेव के कहने पर रक्तबीज शुभ-निशुंभ, मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए मां पार्वती ने असंख्य रुप धारण किएं किन्तु नवरात्र में देवी के प्रमुख नौ रुपो की ही पूजा-अर्चना की जाती है। वैसे भी जब पूरे विश्व के प्रमुख धर्मों में परमात्मा को एक पिता, एक पुरुष की तरह पूजा गया तो वहीं भारत ही एक ऐसा अद्वितीय और अलौकिक देश था, जहंा उस परब्रह्मा को एक स्त्री-शक्ति के रूप में, एक माता के रूप में भी स्वीकार किया गया। हालांकि स्त्रैण और पुरुषैण, यह दोनों शक्ति के ही स्वरूप होते हैं, परन्तु जैसे माता और पिता के संयोग से संतान उत्पन्न होती है, उसी प्रकार शक्ति के स्वरूप का आधार शिव और शिव की कार्यशक्ति को ही हम देवी शक्ति कहते हैं। यानी प्रकृति स्त्रैण है और परब्रह्मा परमात्मा पुरुष है।
प्रकृति और पुरुष के समागम से ही यह सारे संसार का बनना, चलना और संहार होता है। नवरात्र में देवी की साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है। देवी दुर्गा की स्तुति, कलश स्थापना, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ दिनों तक चलने वाला आस्था और विश्वास का अद्भुत त्योहार है। नवरात्र के दौरान हर कोई एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पड़ता है। देवी दुर्गा की पवित्र भक्ति से भक्तों को सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
इन नौ दिनों में मानव कल्याण में रत रहकर, देवी के नौ रुपों की पूजा की जाय तो देवी का आशीर्वाद मिलता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। शारदीय नवरात्र शक्ति की आराधना का महापर्व हैं। यह प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि की शुरुआत भगवान राम के द्वारा हुई थी। लंका पर विजय प्राप्ति के लिए भगवान राम में समुद्र किनारे लगातार 9 दिनों तक शक्ति की उपासना की थी। तभी से शारदीय नवरात्रि को मनाने की परंपरा चली आ रही है।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार, मां दुर्गा समस्त प्राणियो में चेतना, बुद्धि, स्मृति, धृति, शक्ति, शांति श्रद्धा, कंाति, तुष्टि, दया आदि अनेक रूपों में स्थित हैं। अपने भीतर स्थित इन देवियों को जगाना हमें सकारात्मकता की ओर ले जाता है। भगवान श्रीराम ने शक्ति की उपासना कर बलशाली रावण पर विजय पाई थी। जबकि ‘देवी पुराण में उल्लेख है कि रावण शिव के साथ-साथ शक्ति का भी आराधक था। उसने मां दुर्गा से बलशाली होने का वरदान पा रखा था। लेकिन शक्ति ने राम का साथ दिया, क्योंकि रावण अपने भीतर सद्गुण रूपी देवियों को जगा नहीं पाया। तुष्टि, दया, शांति आदि के अभाव में उसका अहंकार प्रबल हो गया। इसलिए देवी की आराधना का एक अर्थ यह भी है कि आप एक ऐसे इंसान बनें, जिसमें शक्ति के साथ- साथ करुणा, दया, चेतना, बुद्धि, तुष्टि आदि गुण भी हों।
बता दें, देवी माता दुर्गा हिन्दू धर्म में आदिशक्ति के रूप में विख्यात है। दुर्गा माता शीघ्र फल प्रदान करने वाली देवी के रूप में प्रसिद्ध है। इस बार के शारदीय नवरात्रि अति शुभ हैं क्योंकि मां दुर्गा के यह व्रत पूरे नौ पड़ रहे हैं। नौ दिनों तक चलने वाली इस पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों आराधना की जाती है।
मान्यता है कि नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ रूपों की आराधना-पूजा करने से जीवन में ऋद्धि-सिद्धि, सुख-शांति, मान-सम्मान, और यश-समृद्धि की प्राप्ति शीघ्र ही हो जाती है। व्रत-उपवास करने से सब पर देवी दुर्गा की कृपा वर्षभर बनी रहती है और जातक का कल्याण होता है। घटस्थापना नवरात्रि के पहले दिन होती है। 9 दिनों तक मां के लिए की जाने वाली पूजा और उपवास 10वें दिन कन्या पूजन के साथ खोला जाता है।
देवी के रूपों में मां दुर्गा को राक्षसों से संघर्ष करते हुए दिखाया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि हम कठिनाइयों (जो वास्तव में राक्षस जैसी ही प्रतीत होती हैं) से हिम्मत हारने के बजाय उनसे संघर्ष करें। नवरात्र तीन शक्तियों महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की उपासना का पर्व भी माना जाता है। ये भी हमारी तीन शक्तियां हैं, जिन्हें इच्छाशक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति कह सकते हैं। भारतवर्ष के महान संत स्वामी विवेकानंदजी के जीवन में शक्ति की महत्ता को लेकर विचार थे-‘स्ट्रेंथ इज लाइफ एंड वीकनेस इज डेथ, यानी शक्ति ही जीवन है और शक्तिविहीन मनुष्य मृत्यु या फिर शव के समान है।
वास्तव में शक्ति वह ऊ$र्जा, प्राण या फिर चेतना का नाम है, जो प्राणी के जीवन का आधार है या यूं कह लें जीवन ही है। हिन्दू धर्म के अनुसार शक्ति वह देवी है जो ऊ$र्जा का अद्वितीय स्रोत एवं शिव की अद्र्धांगिनी भी हैं। समय की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न रूपों में प्रकट होकर नकारात्मक शक्तियों से न सिर्फ प्राणीमात्र की रक्षा की है अपितु धर्म की स्थापना भी की है, वह है शक्ति। इनके कुछ रूप सौम्य और कुछ ऐसे की आसुरी शक्ति का समूल नाश करने के लिए उनके रक्तपान तक करने वाले रहे हैं।
कैसे प्रकट हुईं भगवती
शिव जी के तेज से देवी का मुख बना। यमराज के तेज से केश। संध्या के तेज से भौंहें। अग्नि के तेज से नेत्र। वायु के तेज से कान निॢमत हुए। प्रजापति के तेज से दांत। विष्णु जी के तेज से अठारह भुजाएं। चंद्रमा के तेज से वक्षस्थल। इंद्र के तेज से कमर। वरुण के तेज से जंघा। पृथ्वी के तेज से नितंब। ब्रह्मा के तेज से चरण। सूर्य के तेज से पैरों की उंगलियां। इसी तरह अन्य देवों के तेज से देवी के विभिन्न अंग निॢमत हुए। देवी के प्रिय नैवेद्य नवरात्रि में मां भगवती की प्रसन्नता एवं अपने मनोरथों की पूॢत हेतु नौ दिनों में शुभ फलदायक नैवेद्य अॢपत किए जाने का विधान है।
कैसे करें कलश स्थापना
कलश स्थापना करने के लिए पूजन स्थल से अलग एक पाटे पर लाल व स$फेद कपड़ा बिछाएं। इस पर अक्षत से अष्टदल बनाकर इस पर जल से भरा कलश स्थापित करें। कलश का मुंह खुला ना रखें, उसे किसी चीज से ढक देना चाहिए। कलश को किसी ढक्कन से ढका है, तो उसे चावलों से भर दें और उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें। अगर कलश की स्थापना कर रहे हैं, तो दोनों समय मंत्रों का जाप करें, चालीसा या सप्तशती का पाठ करना चाहिए। पूजा करने के बाद मां को दोनों समय भोग लगाएं, सबसे सरल और उत्तम भोग हैं लौंग और बताशा। मां के लिए लाल फूल सर्वोत्तम होता है, पर मां को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल ना चढ़ाएं। नवरात्रि के दौरान पूरे नौ दिन तक अपना खान-पान और आहार सात्विक रखें।
नवरात्र की तिथियां
नवरात्र की तिथियां इस प्रकार है।
29 सितंबर, प्रतिपदा- बैठकी या नवरात्रि का पहला दिन- घट या कलश स्थापना – शैलपुत्री।
30 सितंबर, द्वितीया- नवरात्रि 2 दिन तृतीय- ब्रह्मचारिणी पूजा।
1 अक्टूबर, तृतीया- नवरात्रि का तीसरा दिन- चंद्रघंटा पूजा।
2 अक्टूबर, चतुर्थी- नवरात्रि का चैथा दिन- कुष्मांडा पूजा।
3 अक्टूबर, पंचमी- नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा, स्कंदमाता पूजा।
4 अक्टूबर, षष्ठी- नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा।
5 अक्टूबर, सप्तमी- नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा।
6 अक्टूबर, अष्टमी- नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन।
7 अक्टूबर, नवमी- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण।
8 अक्टूबर, दशमी- दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी।
ज्योतिषियों की मानें तो इस बार माता का वाहन गज यानी हाथी है। माता के इस वाहन पर आने का मतलब है कि यह वर्ष वर्षा के लिहाज से अच्छा रहने वाला है। देश के कई भागों में अच्छी वर्षा होगी। इससे कृषि क्षेत्र में उन्नति होगी। किसानों की आय बढ़ेगी। लेकिन जान-माल का नुकसान भी होगा। राजनीतिक क्षेत्र में उथल-पुथल की स्थिति रहेगी। युद्ध के हालात बनेंगे। बीते साल भी माता का आगमन हाथी पर हुआ था। जबकि माता प्रस्थान पैदल होगा।
इसकी वजह यह है कि विजयादशमी मंगलवार को है। मंगल और शनिवार के दिन विदाई होने पर माता किसी भी वाहन पर नहीं जाती हैं। वैसे भी माता का आगमन कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जाता है। माता का आगमन जहंा भक्तों में धाॢमक उत्साह और आनंद लेकर आता है वहीं भविष्य में होने वाली कई घटनाओं का संकेत भी देता है। यही वजह है कि प्राचीन काल से मां दुर्गा आगमन और विदाई को में महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। माता जिस वाहन से आती हैं और जिस वाहन से जाती हैं उससे पता चल जाता है कि आने वाला एक साल देश दुनिया और आपके लिए कैसा रहने वाला है।
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीॢतता। देवीभाग्वत पुराण के इस श्लोक में बताया गया है कि माता का वाहन क्या होगा यह दिन के अनुसार तय होता है। अगर नवरात्र का आरंभ सोमवार या रविवार को हो रहा है तो माता का आगमन हाथी पर होगा। शनिवार और मंगलवार को माता का आगमन होने पर उनका वाहन घोड़ा होता है। गुरुवार और शुक्रवार को आगमन होने पर माता डोली में आती हैं जबकि बुधवार को नवरात्र का आरंभ होने पर माता का वहन नाव होता है।
इस वर्ष रविवार को नवरात्र का आरंभ हो रहा है। इसी दिन कलश स्थापना किया जाएगा इसलिए माता का वाहन हाथी है। ‘शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा, शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला। बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा, सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा।। इस श्लोक से स्पष्ट है कि इस वर्ष माता पैदल जा रही हैं। इसकी वजह यह है कि विजयादशमी मंगलवार को है।मंगल और शनिवार के दिन विदाई होने पर माता किसी भी वाहन पर नहीं जाती हैं।
बता दें, इस बार नवरात्र में सर्वार्थसिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग एक साथ बनते नजर आएंगे। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस सर्वसिद्धि योग को बेहद शुभ माना जा रहा है। जिसमें 2 दिन सोमवार पड़ेगा जो, काफी फलदायी है। माना जाता है कि सोमवार के दिन मां दुर्गा की उपासना करने से साधक को उसके द्वारा की गई पूजा का कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है। इसके अलावा नवरात्र के इन नौ दिनों में से 6 दिन विशेष योग बनने वाले हैं। जो भक्तों के लिए बेहद शुभ और फलदायी रहने वाले हैं। इस बार 7 अक्टूबर को दोपहर 12:38 बजे तक नवमी मनाई जाएगी। जिसके बाद दशमी अगले दिन 8 अक्टूबर दोपहर 2:1 मिनट तक रहने वाली है। ज्योतिष के अनुसार यह बेहद शुभ माना गया है।
शक्ति की उपासना यथार्थ
एक बार एक व्यक्ति ने देखा कि महावत ने कुछ हाथी पतली और कमजोर रस्सी से अपने दरवाजे पर बांध रखे थे, उसने महावत से पूछा कि इतनी कमजोर रस्सी को तोड़कर ये क्यों नहीं भाग जाते? महावत ने उत्तर दिया कि मैंने इन्हें बचपन से पाला है। तब वे इस रस्सी को नहीं तोड़ सकते थे। तब उन्होंने कोशिश की, लेकिन नहीं तोड़ सके।
इसलिए इनके दिमाग में यह बात घर कर गई है कि वे रस्सी को तोड़ नहीं सकते। इसलिए वे अब भी प्रयास नहीं करते। हमारे अंदर शक्ति होते हुए भी जब तक हम मानसिक रूप से उसे स्वीकार नहीं करते, तब तक शक्ति का हमारे लिए कोई मूल्य नहीं है। कर्मप्रधान जीवन में यदि प्रयास नहीं किया गया, तो सब कुछ व्यर्थ है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा अर्थात शक्ति की उपासना का सही अर्थ है कि हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और उसे सही दिशा में कार्यान्वित करें। तभी तो हम नवरात्र पर वंदना करते हैं –
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू।।
यह अपने भीतर शक्ति के रूप में स्थित देवी की आराधना है। हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानना होगा। उसका सदुपयोग करना होगा। शक्ति अथवा ऊर्जा प्रकृति के रूप में (बाहरी और हमारे भीतर की प्रकृति), उल्लास के रूप में, क्रियाशीलता के रूप में, प्रसन्नता आदि के रूप में अभिव्यक्त होती है। वासंतिक नवरात्र का पदार्पण भी ऐसे समय में होता है, जब प्रकृति नई ऊर्जा से भरी होती है। प्राणियों में भी यह ऊ$र्जा स्फूॢत, उल्लास और क्रियाशीलता बनकर परिलक्षित होती है। लेकिन यदि हम उसे सकारात्मक रूप में क्रियान्वित नहीं कर पाते, तो शक्ति होने के बावजूद हाथियों की तरह निष्क्रिय होकर खूंटे से बंधे रहते हैं या फिर उस ऊ$र्जा को नकारात्मकता की ओर मोड़ देते हैं। जिस शक्ति का उपयोग हम मदद में या सृजनात्मक कामों में कर सकते हैं, उसका उपयोग विध्वंसक कार्यों में करने लगते हैं। शक्ति के प्रवाह को सकारात्मकता की ओर लाने के लिए नौ दिन शक्ति की आराधना का प्रावधान किया गया होगा।
गज पर आएंगी माता पैदल ही होगा प्रस्थान
‘शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा, शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला। बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा, सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा।। अर्थात इस वर्ष माता का आगमन गज यानी हाथी पर होगा। जबकि प्रस्थान पैदल ही होगा। इस बार 29 सितम्बर रविवार को नवरात्र आरंभ होगा। इस दिन आदि शक्ति माता दुर्गा कैलाश से धरती पर अपने मायके आएंगी। सात श्लोकों में सप्तशती का संपूर्ण सार, मां दुर्गा का शाब्दिक शरीर है ‘दुर्गासप्तशती। इसलिए नवरात्रि में इसका पाठ जरुर करना चाहिए।
नवरात्र इस बार पूरे नौ दिन का है। आरंभ 29 सितंबर से हो रहा है। प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नियमित व्रत व दर्शन-विधान चलेंगे। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा नवरात्रि में विशेष रूप से की जाती है। नवरात्रि के नौ दिन लगातार माता का पूजन चलता है। इस बार शारदीय नवरात्रि 29 सितंबर से शुरु होकर 7 अक्टूबर तक चलेगी।
इस बार पूरे नौ दिन मां की उपासना की जाएगी। 8 अक्टूबर को विजयदशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा। इसी दिन मां दुर्गा का विसर्जन भी किया जाएगा। नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 16 मिनट से लेकर 7 बजकर 40 मिनट तक हैै। इसके अलावा, आप दिन में भी कलश स्थापना कर सकते हैं। इसके लिए शुभ मुहूर्त दिन के 11 बजकर 48 मिनट से लेकर 12 बजकर 35 मिनट तक है।
नवरात्रि के पहले दिन जो घट स्थापना की जाती है उसे ही कलश स्थापना भी कहा जाता है। कलश स्थापना करने के लिए व्यक्ति को नदी की रेत का उपयोग करना चाहिए। इस रेत में जौ डालने के बाद कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालें। इसके बाद ओउम् भूम्यै नम: का जाप करते हुए कलश को 7 अनाज के साथ रेत के ऊपर स्थापित करनी चाहिए। कलश की जगह पर नौ दिन तक अखंड दीप जलते रहना चाहिए। मान्यता है कि नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी मां की आराधना करने से मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसलिए पूजा के समय विशेष सवाधानी बरतनी चाहिए।