गृह राज्यमंत्री रंजीत पाटिल ने बुधवार को इस मुद्दे पर कुछ सामाजिक संगठनों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. शिवसेना प्रवक्ता नीलम गोरहे भी इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं. मंत्री ने कहा, ‘वर्जिनिटी टेस्ट को यौन हमले का एक प्रकार समझा जाएगा. विधि एवं न्याय विभाग के साथ परामर्श के बाद एक परिपत्र जारी किया जाएगा, जिसमें इसे दंडनीय अपराध घोषित किया जाएगा.’
महाराष्ट्र में अब किसी महिला को वर्जिनिटी टेस्ट के लिए बाध्य करना जल्द ही दंडनीय अपराध होगा. राज्य के कुछ समुदायों में यह परंपरा है. इन समुदायों में नवविवाहित महिला को यह साबित करना होता है कि शादी से पहले वह कुंवारी थी.
महिलाओं के सम्मान को चोट पहुंचाने वाला यह रिवाज कंजरभाट और कुछ अन्य समुदायों में है. इसी समुदाय के कुछ युवकों ने इसके खिलाफ ऑनलाइन अभियान शुरु किया है. इस बीच, पाटिल ने यह भी कहा कि उनका विभाग यौन हमले के मामलों की हर दो महीने पर समीक्षा करेगी और यह सुनिश्चित करेगा कि अदालतों में ऐसे मामले कम लंबित रहें.
इस टेस्ट के तहत शादीशुदा महिला को सुहागरात के बाद अपनी वर्जिनिटी साबित करनी होती है. समुदाय पंचायत के सदस्य सुहागरात में इस्तेमाल की गई बेडशीट चेक करते हैं. अगर सफेद बेडशीट पर खून के दाग नहीं मिलते हैं तो शादी को अवैध घोषित कर दिया जाता है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंजरभाट समुदाय में सुहागरात के वक्त कमरे के बाहर पंचायत के लोग मौजूद होते हैं जो बेडशीट को देखकर ये तय करते हैं कि दुल्हन वर्जिन है या नहीं. अगर दूल्हा खून का धब्बा लगी चादर लेकर कमरे से बाहर आता है तो दुल्हन टेस्ट पास कर लेती है. लेकिन अगर खून के धब्बे नहीं मिलते तो पंचायत सदस्य दुल्हन के किसी और के साथ अतीत में रिलेशनशिप होने का आरोपी ठहरा देते हैं.
दो साल पहले एक महिला ने ‘स्टॉप द V टेस्ट’ नाम से एक आंदोलन शुरू किया था. दिसंबर 2017 में नवविवाहित तमाईचिकर और उनके पति विवेक ने इस प्रथा का विरोध किया. इस कैंपेन को कई युवाओं का समर्थन मिला.
रूढ़िवादी समुदाय के सदस्यों ने जल्द ही महिला पर कई तरह के समाजिक बहिष्कार थोप दिए क्योंकि उसने सुहागरात के बाद बेडशीट दिखाने से इनकार कर दिया था.
वर्जिनिटी टेस्ट के खिलाफ कैंपेन चलाने वाले कंजरभात समुदाय के विवेक तमाईचिकर ने कहा, समुदाय में वर्जिनिटी टेस्ट एक खुले राज की तरह है लेकिन महिलाएं पंचायतों और अपने ही परिवारों के खिलाफ जाने से डरती हैं. इसीलिए हम चाहते हैं कि पुलिस अपराधियों को सजा दे. साक्ष्यों के आधार पर पुलिस इन मामलों की जांच इंडियन पेनेल कोड (IPC) के तहत या सोशल बायकॉट ऐक्ट के तहत कर सकती है.
उन्होंने मुंबई मिरर से बातचीत में कहा, पुलिस कार्रवाई का डर वैसे तो दोषियों को वर्जिनिटी टेस्ट से नहीं रोक पाएगा लेकिन शिकायत करने की जिम्मेदारी महिलाओं पर कतई नहीं होनी चाहिए.
महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के सदस्य राजन पागर दावांडे कहते हैं, ‘शादी के दिन अपनी वर्जिनिटी साबित करने का दबाव युवा लड़कियों को अपना शिकार बना रहा है. जातीय पंचायतें इसी बात का फायदा उठाती हैं. कई वजहों से एक महिला अपने पहले यौन संबंध के बाद ब्लीड करने में असफल हो सकती है लेकिन जातीय पंचायतें मौके का फायदा उठाकर परिवारों को लूटने का काम करती है. इस पितृसत्तात्मक प्रथा का अंत होना चाहिए
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