कहते हैं फाल्गुन माह में होली के त्यौहार के बाद आने वाली सप्तमी को शीतला सप्तमी के नाम से जाना जाता है. ऐसे में इस दिन शीतला माता की आराधना करते है और शीतला माता, मां भगवती दुर्गा का ही रूप हैं ऐसा कहा जाता है. ऐसे में माता शीतला को देवी दुर्गा और देवी पार्वती के अवतार के रूप में जाना जाता है और शीतला माता का व्रत रखने से ज्वर, नेत्र विकार, चेचक आदि रोग ठीक हो जाते हैं. आप सभी को बता दें कि शीतला सप्तमी के दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता, चूल्हे की पूजा की जाती है और इस दिन व्रत रखने से शीतला मां खुश हो जाती हैं.
कहते हैं इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाया जाता और यह ऋतु का अंतिम दिन है जब बासी खाना खा सकते हैं. ऐसे में आप सभी जानते ही होंगे कि माता शीतला रोगों को दूर करने वाली हैं और इस व्रत में परिवार के लिए भोजन पहले दिन ही बनाया जाता है और इस दिन बासी भोजन कहते हैं. कहा जाता है शीतला सप्तमी पर व्रती को प्रात: काल शीतल जल से स्नान करना चाहिए और उसके बाद विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिए.
इस दिन व्रत करने वालों को रात्रि में माता का जागरण करना चाहिए और शीतला सप्तमी पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि परिवार का कोई भी सदस्य गलती से भी गरम भोजन न ग्रहण करे. कहते हैं इस दिन ठंडा भोजन किए जाने की परंपरा है और माता शीतला के रूप में पथवारी माता को पूजा जाता है. माता का व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है और जिस घर में शुद्ध मन से शीतला माता की पूजा होती है वहां हर प्रकार से सुख समृद्धि आने लगती है.