भारत रखेगा इमरान खान की सऊदी अरब की यात्रा पर पैनी नजरें

पाकिस्‍तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान की सऊदी अरब की यात्रा पर भारत की पैनी नजर है। इमरान की ये यात्रा ऐसे वक्‍त पर हो रही है, जब सऊदी के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्‍या को लेकर पूरी दुनिया में सऊदी अरब की किरकिरी हो रही है। एेसे में एक सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर ऐसे माहौल में इमरान सऊदी की यात्रा पर क्‍यों गए। आखिर, इमरान की रियाद यात्रा को लेकर क्‍या है राजनयिक निहितार्थ। इमरान की सऊदी यात्रा से भारत का क्‍या है लिंक। इसके अलावा यह भी जानने कि कोशिश करेंगे कि आखिर पाकिस्‍तान किस आधार पर सऊदी से बेहतर संबंध होने का दावा करता रहा है। किन मौके पर पाक ने सऊदी का साथ दिया।

सऊदी-भारत की निकटता से आकुल हुआ पाक 
शीतयुद्ध के बाद भारत और सऊदी अरब के साथ संबंध गहरे हुए हैं। दोनों देश एक दूसरे के निकट आए है। सऊदी के साथ भारत की निकटता पाकिस्‍तान के लिए चिंता का विषय है। दरअसल, शीतयुद्ध के दौरान भारत-पाकिस्‍तान के बीच उत्‍पन्‍न हुए विवादों में सऊदी अरब ने हमेशा पाक का ही साथ दिया। इस दौरान उसके पाकिस्‍तान के साथ दोस्‍ताना संबंध रहे हैं। लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत-सऊदी अरब के रिश्‍तों में सुधार आया।

भारत के लिए सबसे बड़ा तेल आयातक देश बना सऊदी
1990 के दशक में दोनों देश और नजदीक आए। इसका नतीजा यह रहा कि भारत के साथ सऊदी का व्‍यापार बढ़ा है। इसके बाद से यहां बड़ी तादाद में भारतीय सऊदी अरब गए। आज सऊदी भारत का सबसे बड़ा तेल आयातक देश बन गया है। 2014 में सत्‍ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की दो बार यात्रा कर चुके हैं। हालांकि मध्‍य पूर्व एशिया में ईरान भारत का सबसे क़रीबी रहा है। लेकिन अमरीका के ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बाद भारत के लिए आर्थिक साझेदार के तौर पर सऊदी की प्रासंगिकता बढ़ रही है।

दूसरे, पाकिस्‍तान की चिंता तब और गहरी हो गई जब आठ माह पूर्व फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) की संदिग्ध सूची में पाक को शामिल किए जाने पर सऊदी ने वीटो नहीं किया। पाकिस्‍तान को उम्‍मीद थी कि सऊदी उसके पक्ष में खड़ा हाेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

चीन और सऊदी पर पाक की नजर
इन दिनों पाकिस्‍तान के आर्थिक हालात काफी खराब हैं। वह पूरी तरह से दिवालिया हो चुका है। ऐसे में उसकी नजर मित्र देशों पर टिकी है। अमेरिका की बेरुखी के बाद पाकिस्‍तान का पूरा ध्‍यान चीन और सऊदी अरब पर टिकी है। पाकिस्‍तान को उम्‍मीद है सऊदी उसकी आर्थिक स्थिति को संभाल सकता है। हालांकि, सऊदी अरब से उसकी निकटता में ईरान आड़े आ रहा है। यदि पाकिस्‍तान सऊदी के पक्ष में यमन में अपनी सेना भेजता है तो ईरान से उसके रिश्‍ते बिगड़ सकते हैं। चीन भी इस काम के लिए पाक को हरी झंडी कभी नहीं देगा। इस हालात में सऊदी से बेहतर रिश्‍ते बनाना पाक के लिए बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में इमरान की सऊदी यात्रा बहुत सफल होगी इस पर शंका की गुजांइश बनी हुई है।

दोस्‍ती निभाने के लिए पाक ने उठाए ये कदम

  • सऊदी अरब से अपनी दोस्‍ती को निभाने के लिए पाक ने मोहम्मद बिन सलमान के 2030 की नीति का समर्थन किया। इसके तहत सलमान सऊदी की निर्भरता तेल निर्यात पर कम करना चाहते हैं।
  • इसी क्रम में पाकिस्‍तान ने कनाडा के मामले में सऊदी का खुलकर पक्ष लिया था, जब सऊदी ने कनाडा से व्यापारिक रिश्‍ते खत्‍म किया तो पाक ने उसका समर्थन किया।
  • इसके साथ जब सऊदी ने कनाडा के राजदूत को अपने देश से निकाला तो भी पाकिस्‍तान ने सऊदी का साथ दिया। सऊदी के क्राउन प्रिंस का यह सबसे विवादित फ़ैसला था।
  •  सलमान के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की जब पूरी दुनिया निंदा कर रही थी, ऐसे नाजूक मौके पर पाक ने सलमान के इस कदम की तारीफ की। दरअसल, यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला था।
  •  सऊदी अरब ने जब क़तर की नाकेबंदी की तो दुनिया की परवाह किए बगैर पाकिस्तान ने इसका खुलकर समर्थन किया था।
  • इसके साथ सऊदी में रह रहे 27 लाख पाकिस्तानी भी वहां की अर्थव्यवस्था के लिए काफी अहम हैं, एेसे में ये फैक्‍टर भी दोनों देशों के मधुर संबंधों के लिए अहम हैं।
  • जेद्दा स्थित इस्लामिक डिवेलपमेंट बैंक (आईडीबी) की बैठक में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को चार अरब डॉलर का क़र्ज़ देने का आश्वासन दिया था। 

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