भारत में हर साल 17 लाख लोग होते है कैंसर के शिकार, एक करोड़ के पार जाने की सम्भवना

कैंसर के इलाज के दौरान कीमोथीरेपी में लगातार दवा दी जाती है। कुछ समय बाद देखने को मिलता है कि मरीज के भीतर मौजूद कैंसर में ड्रग रजिस्टेंस (प्रतिरोधी क्षमता) विकसित हो जाता है। इसके बाद चिकित्सक मरीज को उससे हाई डोज की दवा देने के लिए बाध्य हो जाते हैं। कुछ ही समय बाद वह दवा भी कैंसर के खिलाफ असरहीन हो जाती है।

वजह यह कि कोशिकाओं में मल्टी ड्रग रजिस्टेंस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आइआइटी बीएचयू, वाराणसी के बायोमेडिकल विभाग द्वारा नैनो टेक्नोलॉजी के जरिए एक खास दवा तैयार की गई है जो मल्टी ड्रग रजिस्टेंस के बावजूद मरीजों को बचाने में कामयाब होगी। हैदराबाद में इस नैनो मेटलसोराफेनिब कांजुगेट्स दवा पर परीक्षण चल रहा है

आकड़े बताते हैं कि कैंसर से पीड़ित लगभग 70 प्रतिशत लोग इस मल्टी ड्रग रजिस्टेंस के शिकार हो जाते हैं। इनसे पीड़ित 70 प्रतिशत से ज्यादा मरीज अपनी जान गंवा देते हैं। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए आइआइटी, बीएचयू स्थित बायोमेडिकल विभाग के डॉ. मार्शल धयाल ने चार वर्ष पूर्व शोध शुरू किया। उन्हें कामयाबी भी मिली जो भविष्य में कैंसर रोगियों के लिए वरदान साबित होने वाली है। उन्होंने बताया कि मानव शरीर की कोशिका के चारों ओर एंटीना की आकृति के रिसेप्टर मॉलिक्यूल्स होते हैं, जो दवा के तत्वों को कोशिका के अंदर ले जाते हैं। बार-बार दवा से रिसेप्टर प्रभावहीन हो जाते हैं। कैंसर कोशिकाओं में मल्टी ड्रग रजिस्टेंस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में जब कैंसर की शिकार कोशिकाओं में कीमोथरेपी की दवा दी जाती है तो असर नहीं होता। जब दवाओं से बचाव के सारे द्वार बंद हो जाते हैं तब मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है।

डॉ. मार्शल ने बताया कि कोशिकाओं पर नैनो साइज के छिद्र भी रहते हैं जो रासायनिक पदार्थ से जुड़ाव नहीं बनाते हैं। अब इन कोशिकाओं में दवा भेजना का एकमात्र रास्ता बचता है नैनो साइज छिद्रों का जिससे 2.5 से लेकर पांच नैनोमीटर साइज वाली दवा को प्रवेश कराया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए नैनो मेटलसोराफेनिब कांजुगेट्स दवा तैयार की गई। इस तरह से नैनो टेक्नोलॉजी से विकसित कण ही इन छिद्रों से प्रवेश कर ड्रग रजिस्टेंस व नान ड्रग रजिस्टेंस वाले कैंसर काशिकाओं को मार देता है। इसके अलावा इस दवा का कोई भी अतिरिक्त साइड इफेक्ट भी नहीं होता है, क्योंकि इसमें दवा के डोज को नब्बे फीसद तक कम कर दिया जाता है।

डॉ. मार्शल ने बताया कि इस शोध कार्य में हैदराबाद स्थित डेक्कन कालेज ऑफ मेडिकल साइंस की काफी अहम भूमिका रही। आइआइटी बीएचयू के अलावा डेक्कन कालेज की लैब में भी परीक्षण चल रहा है जिसके शानदार प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। शीघ्र ही इसका इंसानों पर भी क्लिनिकल ट्रायल शुरू होगा। डा. मार्शल का यह शोध ब्रिटेन के मशहूर प्रकाशक नेचर पब्लिशिंग हाउस के जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में भी प्रकाशित हो चुका है। इसी शोध के अगले चरण में इस बात पर भी काम हो रहा है कि कैंसर सर्जरी के बाद में दोबारा कैंसर न हो, इसे रोकने के लिए भी इस नैनो दवा का उपयोग कैसे संभव हो। इससे संबंधित तकनीकी के पेटेंट के लिए आइआइटी बीएचयू ने आवेदन किया है।

भारत में हर साल लगभग 17 लाख लोग कैंसर के शिकार हो जाते हैं, वहीं सात लाख लोग हर साल ड्रग रजिस्टेंस की वजह से अपनी जान गवां देते हैं। इसमें चिंताजनक बात यह है कि 2050 तक यह संख्या एक करोड़ तक पहुंच जाएगी।

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