गुरुनानक देव का महत्व व कृपा इतनी असीम है कि उनका शब्दों में वर्णन करना कठिन है। गुरुनानक देव न केवल सिख धर्म के संस्थापक हैं, बल्कि हिंदुओं व मुस्लिमों के बीच शांति व आपसी संबंधों का पुल बनाने में भी उनकी भूमिका के महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। अपने जन्म के 550वें वर्ष में भी वे भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने की भूमिका में हैं। इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक हो जाता है कि क्या करतारपुर दोनों पड़ोसियों के बीच शांति का गलियारा बनेगा?
करतारपुर गलियारा सिखों के दो महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों- डेरा बाबा नानक (गुरदासपुर, भारत) और गुरुद्वारा दरबार साहिब (करतारपुर, पाकिस्तान)- को आपस में जोड़ता है। भारतीय सीमा से महज साढ़े चार किमी के फासले पर करतारपुर वह स्थान है, जहां बाबा नानक ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष गुजारे। 12 नवंबर को उनका 550वां जन्मदिवस है और इसी को ध्यान में रखते हुए नौ नवंबर को 550 तीर्थयात्रियों का पहला जत्था करतारपुर साहिब जाएगा, जिसे फ्लैग ऑफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर सकते हैं।
यह यात्रा वीजा-रहित रहेगी, लेकिन हर तीर्थयात्री को सर्विस चार्ज के रूप में 20 डॉलर अदा करने होंगे। स्टेट-ऑफ- द-आर्ट करतारपुर गलियारे का खोला जाना दोनों देशों के संबंध में ऐतिहासिक पल है। इसका खुलना ऐसे समय हो रहा है, जब दोनों देशों के पास एकत्र की गई दुश्मनी दिखाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
इस संदर्भ में यह वर्ष अप्रत्याशित रूप से बहुत खराब रहा है- पुलवामा, पाकिस्तान के भीतर आइएएफ ऑपरेशन और कश्मीर पर सरकारी निर्णय को लेकर वाक युद्ध। इस पृष्ठभूमि में करतारपुर गलियारा समझौता एकमात्र सकारात्मक प्रयास है। यह इसलिए अमल में आ सका, क्योंकि दोनों नई दिल्ली व इस्लामाबाद ने इतनी समझदारी दिखाई कि इसे शेष संबंध (या तनाव) से अलग रखा। अलबत्ता इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि ऐसा करने में दोनों के ही अपने स्वार्थ काम कर रहे थे।