भारतीय मंदिरों के संरक्षण के लिए ‘ईशा फाउंडेशन’ के फाउंडर सद्गुरु जग्गी वासुदेव लंबे समय से अभियान चला रहे हैं. ईस्ट इंडिया कंपनी के राज में भारतीय मंदिरों को कैसे खोखला किया गया? मंदिरों को पुजारियों के हाथों क्यों सौंपा गया? और मंदिरों पर सरकार की त्रिकोणीय पकड़ कैसे मजबूत हुई? इस बारे में उन्होंने मीडिया को विस्तार से जानकारी दी.
सद्गुरु ने कहा, ‘मैं रोजाना मंदिर जाने वाला इंसान नहीं हूं. मैं साल-दो साल में ही मंदिर जाता हूं. अगर मुझे लगता है कि कोई मंदिर शक्तिशाली है या खूबसूरत है या उसके स्ट्रक्चर में कोई तो खास बात है तो मैं वहां जाता हूं. जब मुझे लगता है कि कोई धार्मिक स्थल मुझे ऊर्जा से भर रहा है तो मैं वहां जाता हूं. मैंने अपने जीवन में आज तक प्रार्थना नहीं की है. योग की संस्कृति आपको बाहर से मदद मांगना नहीं सिखाती है बल्कि खुद जीवन जीने की कला सिखाती है.’
सद्गुरु कहते हैं, ‘ भारत के मंदिर सिर्फ पूजा स्थल ही नहीं हैं बल्कि स्थापत्य और संस्कृति के लिहाज से अद्भुत हैं. मैंने अपनी मोटर साइकिल पर भारत की खूब यात्रा की है. जब आप तमिलनाडु की यात्रा करेंगे तो आप पाएंगे कि मंदिर एक बेहद अलग स्थान है. यहां के मंदिर शहर की धड़कन हैं. मंदिर की वजह से यहां शहर बसता है, न कि वहां लोग हैं इसलिए मंदिर बने हैं. मंदिर बनने के बाद ही इस जगह को बड़े शहर के रूप में पहचान मिली है.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कितने लोग ये बात जानते होंगे कि तमिनलाडु में ग्रेनाइट को जिस तरह की नक्काशी से तराशा गया है, वैसी अद्भुत कला दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलती है. मैं दुनियाभर के तमाम देशों में घूम चुका हूं और मैंने वहां प्राचीन कलाओं को बड़ी बारीकी से देखा है. ग्रेनाइट पर तमिलनाडु जैसी नक्काशी कहीं और देखने को नहीं मिलती है. ग्रेनाइट पर नक्काशी एक बेहद मुश्किल कला है.’
सद्गुरु ने बताया, यूनेस्को खुद तमिलनाडु के मंदिरों की दुर्गति को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है. जुलाई 2020 में तमिलनाडु सरकार मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हुई. तमिलनाडु सरकार ने बताया कि 11,999 ऐसे मंदिर है जहां वित्तीय संकट के चलते एक बार भी पूजा नहीं हुई है. जबकि 34 हजार ऐसे मंदिर थे, जिनकी सालाना आय 10,000 से भी कम थी. इसके अलावा 37,000 ऐसे मंदिर थे जिनमें पूजा, केयरटेकिंग, सिक्योरिटी और क्लीनिंग की जिम्मेदारी सिर्फ एक आदमी पर थी.
सद्गुरु के मुताबिक, 5 लाख एकड़ जमीन मंदिरों के नाम पर आवंटित है. हमारे पास 2.33 करोड़ स्केवर फीट में फैलीं बिल्डिंग्स हैं, लेकिन उनसे हमारा सालाना रेवेन्यू सिर्फ 128 करोड़ रुपए है. इसमें से 14 प्रतिशत ऑडिट और मैनेजमेंट के लिए जाता है. एक से दो प्रतिशत पूजा और त्योहारों पर कार्यक्रमों के लिए चला जाता है.
सद्गुरु ने गुरुद्वारों के प्रबंधन की मिसाल दी. उन्होंने कहा, SGPC (गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी) करीब 85 गुरुद्वारों का संचालन करती है, लेकिन उनका बजट 1000 करोड़ रुपए सालाना होता है. अपने समुदाय के प्रति उनकी जनसेवा भी सराहनीय है. तमिलनाडु में 85 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की है. अब जरा सोचिए यहां के कुल 44,000 मंदिरों से आपको सिर्फ 128 करोड़ रुपए की सालाना इनकम हो रही है.