पिछले साल पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच क्रिटिकल मिनरल्स (बहुमूल्य धातुओं) के क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए आपसी सहयोग की जो सहमति बनी थी उसका भावी रोडमैप तैयार हो गया है।
एक दिन पहले भारतीय एनएसए अजीत डोभाल और अमेरिकी एनएसए जैक सुलीवान की अगुवाई में हुई बैठक में तय किया गया है। इसके दो वर्गों में अलग अलग धातुओं में आपसी निर्भरता बढ़ाने के लिए सहयोग स्थापित किया जाएगा।
गैलियम और ग्रार्मेनियम का सप्लाई चेन बनाने का इंतजाम
पहले चरण में ग्रेफाइट, गैलियम और ग्रार्मेनियम का सप्लाई चेन बनाने का इंतजाम होगा और दूसरे वर्ग में लिथियम, टाइटेनियम, गैलियम के प्रोसेसिंग की सुविधा विकसित की जाएगी ताकि दोनों देशों की कंपनियों को इनकी आपूर्ति हो सके।
कहां किया जाता धातुओं का इस्तेमाल?
उक्त बहुमूल्य धातुओं का बेहद उन्नत प्रौद्योगिकी आधारित उद्योगों में इस्तेमाल किया जाता है। जैसे ग्रेफाइट, गैलियम, लिथियम का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर, मेमोरी सेल्स, मोबाइल फोन्स, लैपटॉप, ग्रिड स्टोरेज, इलेक्टि्रक वाहनों में इस्तेमाल किया जाता है।
अब दोनों देशों की शोध संस्थानों व कारपोरेट सेक्टर के बीच सहयोग का रास्ता खुल गया है।
बहुमूल्य धातुओं के क्षेत्र में भारत व अमेरिका की एक समान समस्याएं हैं। अधिकांश बहुमूल्य धातुओं के खान, प्रोसेसिंग और आपूर्ति पर चीन का दबदबा है।
इलेक्टि्रक वाहनों में इस्तेमाल होने वाले बैट्री निर्माण के लिए जरूरी लिथियम का खान चीन के पास 7 फीसद ही हैं लेकिन दुनिया के 60 फीसद लीथियम बाजार पर उसका कब्जा है।
चीन पर कितना निर्भर है भारत?
दुनिया में 75 फीसद बैट्रियां चीन बना रहा है। इस वजह से भारत के दोपहिया वाहनो व तीनपहिया वाहनों में जो बैट्रियां लग हई हैं उनमें से 90 फीसद चीन से आयातित हैं। चीन पर निर्भरता कम करने में भारत व अमेरिका का सहयोग काम आएगा।
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