वैशाख मास में कृष्ण पक्ष एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सौभाग्य प्रदान करने वाली और सभी पापों को नष्ट करने वाली है। मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गए थे। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त होता है। जो लोग श्रद्धा भाव से इस एकादशी पर व्रत रखते हैं वो पापों से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं।
जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। वरुथिनी एकादशी के व्रत का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर माना जाता है। इस दिन अन्न का दान श्रेष्ठ माना जाता है। अन्न दान से देवता, पितर और मनुष्य तृप्त हो जाते हैं। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य विद्या प्राप्त कर लेता है। मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल प्राप्त होता है।
वरुथिनी एकादशी पर कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। दूसरी बार भोजन नहीं करना चाहिए। दूसरे की निंदा नहीं करनी चाहिए। क्रोध, मिथ्या भाषण का त्याग करना चाहिए। इस व्रत में नमक, तेल एवं अन्न वर्जित हैं। इस व्रत में शहद का सेवन नहीं करना चाहिए। किसी अन्य व्यक्ति के घर भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए। एक बार से अधिक भोजन करने से बचें। रात्रि में भूमि पर ही शयन करें। श्री हरि विष्णु के विग्रह के समीप शयन करें। रात्रि जागरण करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को दान दें। इसके उपरांत ही भोजन ग्रहण करें।