मेरिट में सिर्फ अंकों को आधार बनाने से वास्तविक क्षमता का पता लगाना मुश्किल होगा। चूंकि सिपाही का पद महत्वपूर्ण होता है और प्रोन्नति पाने के बाद इनको लघु अपराधों की विवेचना भी करनी होती है, इसलिए लिखित परीक्षा अवश्य होनी चाहिए। हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश के तहत अंतिम चयन परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी थी।
प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा कि पुरानी प्रक्रिया में चयन में दो से तीन वर्ष का समय लग जाता है।
सरकार ने सिर्फ लिखित परीक्षा का प्रावधान समाप्त किया है। शारीरिक दक्षता के मानकों में कोई कटौती नहीं की गई है। सरकार को तत्काल सिपाहियों की आवश्यकता है। प्रक्रिया लंबी करने से नुकसान होगा। 2017 की सिपाही भर्ती में फिर से लिखित परीक्षा का प्रावधान कर दिया गया है, मगर ऐसा सिर्फ अभ्यर्थियों को शार्ट लिस्ट करने के लिए किया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि बिना लिखित परीक्षा के सिपाहियों की भर्ती करने में कोई अवैधानिकता नहीं है।
उल्लेखनीय है कि 12 दिसंबर 2015 को जारी विज्ञापन में पुलिस और पीएसी में 28916 पुरुष आरक्षियों तथा पुलिस में 5800 महिला आरक्षियों की भर्ती की जानी थी। इसके लिए पुलिस विभाग ने 2008 की नियमावली के नियम 15 में संशोधन कर लिखित परीक्षा का प्रावधान समाप्त कर दिया। इसे कोर्ट में चुनौती दी गई थी।