दुनिया की सबसे ऊंची ‘अटल’ टनल अब उद्घाटन के लिए तैयार है। 10 हजार फीट पर स्थित दुनिया की सबसे लंबी रोड टनल को बनाने में दस साल लग गए। इसका नाम है ‘अटल रोहतांग टनल’।इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है। सितंबर में इस टनल का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।
निर्माण शुरू होने पर इसकी लंबाई 8.8 किलोमीटर तय थी, लेकिन निर्माण पूरा होने पर जब जीपीएस रीडिंग ली गई तो सुरंग की लंबाई नौ किलोमीटर निकली। यह दुनिया की ऐसी पहली सुरंग है जिसे लगभग 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है। इसके शुरू होने पर मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी।
एस्केप सुरंग: इसमें एक आपातकालीन एस्केप सुरंग भी शामिल है, जिसे मुख्य सुरंग के नीचे बनाया गया है। यह आपातकालीन निकास प्रदान करेगा, जो मुख्य सुरंग को अनुपयोगी बना सकता है। ऑल वेदर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए मनाली से टनल तक पहुंच मार्ग पर स्नो गैलरियां भी बनाई गई हैं।
कनेक्टिविटी और सुरक्षा: सुरंग में हर 150 मीटर पर टेलीफोन, हर 60 मीटर पर एक फायर हाइड्रेंट, 500 मीटर पर आपातकालीन निकास, हर 2.2 किलोमीटर पर हवा की गुणवत्ता की निगरानी प्रणाली, 250 मीटर पर सीसीटीवी कैमरों के साथ प्रसारण प्रणाली और घटना का पता लगाने वाली स्वचालित प्रणाली लगाई गई है।
समय की बचत: हिमालय की पीर पंज पर्वत श्रेणी में बनी यह सुरंग रोहतांग दर्रे तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्ग भी होगी, जो 13 हजार 50 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। अभी मनाली घाटी से लाहौल स्पीति घाटी की यात्रा में आमतौर पर पांच घंटे से अधिक समय लगता है जो अब 10 मिनट से कम समय में पूरा हो जाएगा।
यह 10.5 मीटर चौड़ी दो लेन वाली सुरंग है। इसमें आग से सुरक्षा के सभी उपाय मौजूद हैं, साथ ही आपात निकासी के लिये सुरंग के साथ ही बगल में एक और सुरंग बनाई गई है। इस सुरंग का निर्माण हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वालों को सदैव कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है जो शीत ऋतु के दौरान लगभग 6 महीने तक लगातार शेष देश से कटे रहते हैं। सेरी नुल्लाह डिफ़ॉल्ट ज़ोन इस सुरंग के अंदर है।
भारत की सामरिक शक्ति में इजाफा: इस टनल के उद्घाटन के बाद पाकिस्तान-चीन बॉर्डर पर भारत की रणनीतिक ताकत बढ़ जाएगी। साथ ही अग्रिम चौकियों की मुस्तैदी से चौकसी हो सकेगी। इसके बनने से सबसे ज्यादा फायदा लद्दाख में तैनात भारतीय फौजियों को मिलेगी। क्योंकि इसके चलते सर्दियों में भी हथियार और रसद की आपूर्ति आसानी से हो सकेगी। अब सिर्फ जोजिला पास ही नहीं बल्कि इस मार्ग से भी फौजियों तक सामान की सप्लाई हो सकेगी।
रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्त्व की सुरंग बनाए जाने का ऐतिहासिक फैसला 3 जून, 2000 को लिया गया था जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। सुंरग के दक्षिणी हिस्से को जोड़ने वाली सड़क की आधारशिला 26 मई, 2002 को रखी गई थी।