राजस्थान में सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पार्टी ने उनपर एक्शन लिया और प्रदेश अध्यक्ष-उपमुख्यमंत्री का पद वापस ले लिया.
लेकिन अभी तक ये पूरा राजनीतिक घटनाक्रम खत्म नहीं हुआ है. क्योंकि अभी सचिन पायलट के अगले कदम पर नजरें हैं. ऐसे में देखा जा रहा है कि पायलट आगे क्या करेंगे, क्योंकि जो हालात दिख रहे हैं उस हिसाब से उनकी राह आसान नहीं है.
– विधानसभा अध्यक्ष की ओर से बागी विधायकों को नोटिस दिया गया है. ऐसे में सचिन पायलट और समर्थक विधायकों को सीट जाने का डर है और कई विधायक फिर से चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं.
– सबसे बड़ी मुश्किल ये भी है कि सचिन पायलट के पास उतने नंबर नहीं हैं, कि वो अकेले दम पर अशोक गहलोत की सरकार को गिरा सकें. ऐसे में भाजपा के साथ जाना मजबूरी हो सकता है.
– अगर पायलट बीजेपी के साथ जाने का मन बनाते हैं, तो कई विधायक ऐसे भी हैं जो ऐसा नहीं करना चाहते हैं. क्योंकि उनके समर्थन के कुछ विधायक 70+ वाले भी हैं, ऐसे में इस उम्र में नई पार्टी से फिर चुनाव लड़ना मुश्किल हो सकता है.
– कांग्रेस में मौजूद सचिन पायलट के कई समर्थक यही चाहते हैं कि वो पार्टी के साथ बने रहें. पार्टी में रहकर उन्हें वापस वही पद और कद मिल सकता है.
– सचिन पायलट के साथ गुर्जर समुदाय का सपोर्ट है, लेकिन इस लड़ाई को जीतने के लिए सिर्फ यही काफी नहीं है. राजस्थान का इतिहास है कि कभी यहां तीसरा मोर्चा जनता को पसंद नहीं आया है, यानी अलग राह भी सचिन पायलट के लिए मुश्किल है. सचिन पायलट का दबदबा इसी समुदाय में अधिक है, ऐसे में अलग जाने पर पूरे राज्य को समझाना मुश्किल हो सकता है.
– अगर भाजपा में जाने का रास्ता चुना जाता है, तो ये मुश्किल होगा क्योंकि बीजेपी में सीधे मुख्यमंत्री पद मिलना आसान नहीं है.
बीजेपी में अभी वसुंधरा राजे हैं और अधिकतर विधायक उनके ही समर्थन में हैं. साथ ही ओम बिड़ला, गजेंद्र शेखावत जैसे केंद्रीय नेता भी हैं, यानी अगर बीजेपी में भी सचिन पायलट आते हैं तो सीधे टॉप पर जाने की राह आसान नहीं होगी.
– अगर अब कांग्रेस में सचिन पायलट वापस भी आते हैं तो अशोक गहलोत ने जिस प्रकार उनके खिलाफ मोर्चा खोला है. तो सचिन पायलट के लिए फिर वही पद और कद पाना मुश्किल हो सकता है.