सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यूं तो ई व्हीकल में काम आने वाली लीथियम आयन बैटरी की कीमत में उल्लेखनीय कमी हुई है, लेकिन तब भी यह इतना नहीं हुआ है, जिससे इसके दाम पेट्रोल, डीजल या गैस से चलने वाले वाहनों के बराबर हो सके। बैटरी की कीमत की वजह से ही ई व्हीकल के दाम शत प्रतिशत तक बढ़ जा रहे हैं। इसलिए ऐसे मोटर वाहनों को अभी भी सरकारी सहायता के लिए सब्सिडी की दरकार है। हालांकि केन्द्र सरकार पहले से ही सार्वजनिक परिवहन के तौर पर उपयोग होने वाले वाहनों पर सब्सिडी दे रही है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इसलिए वर्ष 2018-19 के बजट में ई व्हीकल की सब्सिडी के लिए बजट बढ़ाया जा सकता है।
ई व्हीकल के लिए सब्सिडी की विशेष योजना
केन्द्र सरकार ने ई वाहनों को सब्सिडी उपलब्ध कराने के लिए फास्टर एडोप्शन एंड मैन्यूफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक एंड हाईब्रिड व्हीकल्स इन इंडिया -फेम इंडिया- नामक योजना की शुरूआत की है, जिसके तहत दस लाख या इससे अधिक आबादी वाले शहरों को बस, टैक्सी और ऑटो रिक्शा के लिए सब्सिडी उपलब्ध करायी जा रही है। लेकिन इसके पहले चरण के लिए सरकार ने महज 795 करोड़ रुपये का ही आवंटन किया गया है। इसलिए इसके पहले चरण में 11 शहरों में ई व्हीकल के लिए 437 करोड़ रुपये की ही सब्सिडी उपलब्ध करायी जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि दूसरे चरण में आवंटन बढ़ेगा तो राज्यों को ज्यादा वाहनों के लिए सब्सिडी मिलेगी।
पहले चरण में ही राज्यों का रहा बढ़िया रिस्पांस
केन्द्रीय भारी उद्योग विभाग के अधिकारियों के मुताबिक फेम इंडिया के पहले यापायलट चरण के तहत देश के सभी राज्यों से ई व्हीकल के बारे में एक्सप्रेशन आफ इंटरेस्ट-ईओआई- मंगाया गया था। इसमें 21 राज्यों की तरफ से 44 शहरों के लिए कुल 47 प्रस्ताव आए। इसके तहत राज्यों ने 3144 ई बस, 2430 4व्हीलर ई टैक्सी और 21545 ई तिपहिया ऑटो रिक्शा के लिए प्रस्ताव आया है। इतने वाहनों के लिए कुल 4054.6 करोड़ रुपये की सब्सिडी की दरकार होगी। चूंकि फेम इंडिया के पहले चरण के तहत 795 करोड़ रुपये का ही आवंटन हुआ है, इसलिएफिलहाल मांग के मुकाबले कम वाहनों के लिए सब्सिडी उपलब्ध करायी जा रही है।
छोटे शहरों के लिए भी मिलेगी सब्सिडी
सूत्रों का कहना है कि ई व्हीकल की सब्सिडी के लिए जब बजट बढ़ जाएगा तो छोटे शहरों में भी वाहनों के लिए सब्सिडी दी जा सकेगी। अभी तो कम रकम की वजह से देश के दस लाख या इससे अधिक आबादी के शहरों को ही शामिल किया जा रहा है। हां, पहाड़ी एवं पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए आबादी की इस सीमा को हटा दी गई है। ऐसा इसलिए कि वहां यदि दस लाख की आबादी का फार्मूला रखेंगे तो अधिकतर शहर छूट जाएंगे।