“ख़ाक भी जिस जमीं की पारस है, शहर- मशहूर यह बनारस है.” इसी रहस्य को समझने के लिए अब आपको बनारस में भटकना नहीं पड़ेगा क्योंकि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) ‘काशी स्टडीज़’ नाम से पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स शुरू करने जा रहा है. दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक, जीवंतता की मिसाल यह शहर जो गलियों के नाम से जाना जाता था अब विस्तार लेने लगा है. काशी की धर्म संस्कृति ,संगीत परम्परा और शिल्पियों की थाती दुनिया को हमेशा ही आकर्षित एवं विस्मित करती रही है. काशी के गूढ़ रहस्य को समझने के लिए लोगों ने इसे समय-समय पर अपने शोध के विषय के रूप में चुना और किताबें भी लिखी.
ऐसे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय अब ‘काशी स्टडीज’ के नाम से पाठ्यक्रम शुरू करने जा रहा है. इसका सेशन अगले वर्ष जुलाई से शुरू कर दिया जाएगा. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नगरी ‘काशी’ पर दो वर्षीय पीजी कोर्स की शुरुआत होगी. बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय में नए सत्र से ‘काशी स्टडीज’ पीजी कोर्स में काशी को समझने की चाह रखने वाले देशी संग विदेशी छात्र भी प्रवेश ले सकेंगे. विश्ववविद्यालय प्रशासन ने इतिहास विभाग में शुरू होने वाले इस नए कोर्स के लिए मंजूरी दे दी है.
सामाजिक संकाय के डीन प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र ने बताया कि 30 दिसंबर तक विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गठित कमेटी नए कोर्स की रूपरेखा तैयार कर लेगी. जनवरी में इसे विश्वविद्यालय के एकेडमिक काउंसिल के समक्ष पेश किया जाएगा उसके बाद एक्जीक्यूटिव काउंसिल इस पर अपनी फाइनल मुहर लगाएगी. मिश्र के मुताबिक, चार सेमेस्टर में छात्र काशी की संस्कृति, इतिहास, परम्परा, धार्मिक महत्व, बनारसी फक्कड़पन, रहन-सहन और काशी की थाती जैसे गुलाबी मीनाकारी ,बनारसी रेशम के उत्पाद, बनारसी पान, लकड़ी के खिलौने, लंगड़ा आम को करीब से जान सकेंगे. तुलसीदास, कबीर, प्रेमचंद, बुद्ध, रैदास को भी नई पीढ़ी समझें, ये कोर्स उन्हें इस ऐतिहासिक शहर की धरोहरों की सारी जानकारियां देगी. भारत रत्न बिस्मिलाह खां की शहनाई की तान ,पद्म सम्मानित पंडित किशन महाराज की तबले की थाप के साथ ही बनारस घराने की संगीत की सुर-लय और ताल को भी समझने का मौका मिलेगा.
इतना ही नहीं राष्ट्रवाद, साहित्य व राजनीतिक धाराओं के संगम पुरुष अलट बिहारी वायजेपी, जल्द ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने वाले हैं. उन पर अध्ययन के लिए ‘सेंटर फॉर अटल स्टडीज’ की स्थापना को हरी झंडी मिल गई है. इसके साथ ही बीएचयू देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय बनने की ओर अग्रसर हो गया है, जहां भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी अध्ययन केंद्र की स्थापना होगी.
बीएचयू के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर की अध्यक्षता में 5 दिसंबर को हुई बैठक में ‘सेंटर फॉर अटल स्टडीज’ का पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए 11 सदस्यीय कमेटी गठित कर दी गई है. इस कमेटी में सामाजिक विज्ञान संकाय के छह विभागों तथा बीएचयू के दो अन्य केंद्रों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है. इनमें इतिहास विभाग, राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र एवं हिंदी विभाग के आठ प्राफेसरों के अतिरिक्त महिला अध्ययन एवं विकास केंद्र तथा मालवीय शांति अनुसंधान केंद्र के प्रभारी शामिल हैं.
जानकारी के मुताबिक, अटल अध्ययन केंद्र के माध्यम से एक दर्जन से अधिक पाठ्यक्रम आरंभ किए जाएंगे. परास्नातक स्तर पर दो वर्षीय डिग्री कोर्स में पढ़ाए जाने वाले विषयों में प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन पद्धति, आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन का इतिहास, राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास, स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व का वैश्विक परिप्रेक्ष्य, वर्तमान भारत में मोदी युग, लोकतंत्र और संविधान, रोजगार सृजन के तरीके, कौशल विकास प्रमुख रूप से प्रस्तावित हैं. पाठ्यक्रम की रूपरेखा 30 दिसंबर तक तैयार करके कुलपति को सौंप दी जाएगी.