दुनिया के सबसे बड़े आइसबर्ग के ब्रिटिश टापू से टकराने की आशंका दिखाई दे रही है। ऐसा होने पर लाखों जीव जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ सकता है। बर्फ की ये विशाल चट्टान 2017 में अलग हुई थी।
नई दिल्ली । अंटार्कटिका के नजदीक स्थित ब्रिटिश टापू पर संकट के बादल मंडराते दिखाई दे रहे हैं। इसकी वजह बना है दुनिया का सबसे बड़ा हिमपर्वत या आइसबर्ग। ये आइसबर्ग 1 ट्रिलियन टन वजनी है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) के मुताबिक 12 जुलाई 2017 को ये अंटार्कटिका के विशाल लार्सन सी आईसशैल से अलग हुआ था। इसके बाद पिछले माह के मध्य में ये साउथ एटलांटिक में साउथ ऑर्कने के पास दिखाई दिया था। एजेंसी के मुताबिक अपनी जगह से अलग होकर ये आइसबर्ग अब तक 1050 किमी से अधिक का सफर तय कर चुका है। इस दौरान इसके कई और टुकड़े भी अलग होकर दूसरी जगह पर बिखर गए, लेकिन इसका आकार और वजन अब भी विशाल है।
ईएसए के मुताबिक ये अब तक रिकॉर्ड किए गए दुनिया के सबसे बड़े आइसबर्ग लक्जमबर्ग से करीब दोगुने आकार और वजन का है। कॉपरनिकस सेंटिनल-1 सेटेलाइट के जरिए इसको लगातार ट्रैक किया जा रहा है। बर्फ के इस विशाल पर्वत का नाम ए-68 है। वैज्ञानिक इससे अलग हुए हिस्सों को एल्फाबेट ए,बी,सी का नाम देते हैं। 5 जुलाई 2020 को इस आइसबर्ग के तीन वर्ष पूरे होने पर भी सेटेलाइट से इसके आकार और वजन के बारे में पता लगाया गया था। इएसए ने इसकी ताजा लोकेशन के बारे में कुछ दिन पहले ही रिपोर्ट की थी। इसमें इसको एलिफेंट आइसलैंड से कुछ दूरी पर दिखाया गया था।
जानकारी के मुताबिक आशंका जताई जा रही है कि ये आइसबर्ग साउथ जार्जिया और सेंडविच आइसलैंड की तरफ आगे बढ़ रहा है। ये एक ब्रिटिश ओवरसीज टेरिटरी है, जो करीब 167 लंबा और 37 किमी चौड़ा है। वैज्ञानिकों को आशंका ये भी है कि यदि ये आइसबर्ग इस टापू से टकरा गया तो यहां पर रहने वाले हजारों पैंग्विन और सील मछलियों के जीवन को खतरा हो सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसके इस टापू से टकराने पर हजारों जीव जंतुओं के प्राकृतिक ठिकानों पर इसकी वजह से संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ईएसए के मुताबिक ये आइसबर्ग करीब 200 मीटर गहरा है। हालांकि अभी तक वैज्ञानिक इसके टकराने को लेकर आशंकित ही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ समय के बाद वो ये बता पाने में सक्षम हो सकेंगे कि ये वास्तव में इस टापू से टकराएगा भी या नहीं।
ईएसए के मुताबिक अब तक पांच विशाल आइसबर्ग के बारे में वैज्ञानिकों को जानकारी है, लेकिन ये इन सभी से विशाल है। वैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि इससे अलग होने वाले हिस्से भी यदि किसी जहाज से टकरा जाएं तो उसका हाल टाइटेनिक जैसा ही हो सकता है, जो अपनी पहली ही समुद्री यात्रा के दौरान एक विशाल हिमखंड से टकराकर जलमग्न हो गया था। वैज्ञानिकों को ये भी लग रहा है कि सेंडविच आइसलैंड के नजदीक पानी का तापमान अधिक है। ऐसे में वहां पर टराने से पहले ये कई भागों में अलग हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो समुद्र जीवों पर आने वाला संकट भी टल जाएगा। यदि ये इस टापू से टकराने से पहले ही कई भागों टूट गया तो ये भी काफी हद तक मुमकिन है कि आने वाले कुछ सालों में ये पिघल कर नष्ट भी हो जाए।
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के बायॉलजिस्ट प्रफेसर जेरायंट टार्लिंग का ये भी कहना है कि इससे निकलने वाले बर्फीले पानी की वजह से काई और प्लैंकटन के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो सकता है। इसका सीधा असर उन समुद्री जीवों पर पड़ेगा जो इनसे अपनी भूख मिटाते हैं। यदि ये टापू से टकरा गया तो काफी मात्रा में वायुमंडल में कार्बनडाईऑक्साइड का उत्सर्जन भी हो जाएगा।
हालांकि, इस आइसबर्ग से केवल नुकसान ही हो ऐसा भी नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये धूल और सेडिमेंट से भरा होने के कारण इसके पिघलने से समुद्र की उर्वरक क्षमता बढ़ जाएगी। आपको बता दें कि इस टापू पर वर्ष 1775 में ब्रिटेन के लिए कैप्टन जेम्स कुक ने दावा किया था। इसपर पेंग्विन की कई प्रजातियां रहती हैं। 20वीं शताब्दी के दौरान यहां पर व्हेल मछलियों का शिकार भी किया जाता था। मौजूदा समय में यहां पर ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे रिसर्च स्टेशन हैं। इसमें 30 वैज्ञानिक रहते हैं।