रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल को अब भारत में एक नई जिम्मेदारी मिली है. इस बार वे निजी क्षेत्र से जुड़े हैं. बिस्किट और डेयरी प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज ने उर्जित पटेल को कंपनी का एडिशनल डायरेक्टर नियुक्त किया है.
पटेल को तत्काल प्रभाव से इस पद पर नियुक्त किया गया है और इस पद पर अगले पांच साल के लिए बने रहेंगे. ब्रिटानिया ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी में बताया है कि उर्जित पटेल को कंपनी का एडिशनल डायरेक्टर (नॉन एग्जीक्यूटिव इंडीपेंडेट डायरेक्टर की श्रेणी में) बनाया गया है. उनका कार्यकाल 30 मार्च, 2026 तक होगा. सेबी के नियमों के तहत किसी लिस्टेड कंपनी को ऐसी नियुक्ति की जानकारी स्टॉक एक्सचेंजों को देनी होती है.
रघुराम राजन के जाने के बाद NDA सरकार ने उर्जित पटेल को रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया था. पटेल ने साल 2016-2018 के बीच दो साल के लिए आरबीआई गवर्नर की जिम्मेदारी संभाली थी.
डॉ. उर्जित पटेल गवर्नर रहने से पहले रिजर्व बैंक में ही डिप्टी गवर्नर और मॉनिटरी कमिटी के इंचार्ज थे. वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस ऐंड पॉलिसी की गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन भी हैं. वह भारत सरकार की संस्थाओं से जुड़ने से पहले करीब 15 साल तक निजी क्षेत्र में सेवाएं दे चुके हैं.
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से अपना प्रोफेशनल करियर शुरू किया था. वह वाशिंगटन के ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट में साल 2009 से 2012 तक नॉन रेजिडेंट सीनियर फेलो रह चुके हैं.
अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही दिसंबर 2018 में रिजर्व बैंक से इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि उर्जित पटेल ने निजी कारणों का हवाला दिया था. लेकिन इसके बारे में कई तरह की अटकलें सामने आई थीं. यहां तक कहा गया कि सरकार रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को खत्म करना चाहती है.
सरकार ने सेक्शन 7 का इस्तेमाल कर रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड का बड़ा हिस्सा हासिल किया था. सरकार द्वारा सेक्शन 7 का इस्तेमाल करने की बात कहना और छोटे उद्योगों के लिए लोन आसान बनाना, कर्ज और फंड की समस्या से जूझ रहे 11 सरकारी बैंकों को कर्ज देने से रोकना, कुछ ऐसे मसले थे जिनके बारे में कहा जाता है कि उर्जित पटेल की सरकार से अलग राय थी.
उर्जित पटेल जब रिजर्व बैंक के गवर्नर नियुक्त किए गए थे. उसके 3 महीने के भीतर नोटबंदी का फैसला लिया गया. बाद में आरटीआई में ये खुलासा हुआ कि नोटबंदी के फैसले को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मोदी सरकार को आगाह किया था. दरअसल, आरबीआई इस तर्क से सहमत नहीं था कि काले धन का लेनदेन कैश के जरिए होता है.