भारत ने बुधवार को यूएनजीए के 75वें सत्र में कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा बौद्ध, हिंदू और सिख धर्म के खिलाफ बढ़ती नफरत और हिंसा को स्वीकार करने में विफल रही है। इसके साथ ही यह भी रेखांकित किया कि शांति की संस्कृति के ‘अब्राहमिक’ धर्मों के लिए नहीं हो सकता। शांति की संस्कृति पर यूएन महासभा को संबोधित करते हुए भारत के प्रथम सचिव आशीष शर्मा ने कहा कि भारत इस बात पर पूरी तरह सहमत है कि यहूदी-विरोधी, इस्लामोफोबिया और ईसाई-विरोधी कृत्यों की निंदा करने की आवश्यकता है। वह भी इस तरह के कृत्यों की दृढ़ता से निंदा करता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र का संकल्प इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर केवल इन तीनों धर्मों को लेकर ही बात करता है।

आशीष शर्मा ने आगे कहा कि शांति की संस्कृति केवल इन धर्मों के लिए नहीं हो सकता। जब-तक यह जारी रहेगा तब तक दुनिया शांति की संस्कृति को बढ़ावा नहीं दे सकती। यह कहते हुए कि संयुक्त राष्ट्र एक ऐसा निकाय है जिसे किसी विशेष धर्म का पक्ष लेना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि अगर हम वास्तव में चयनात्मक हैं, तो दुनिया अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक सैमुअल हंटिंगटन की भविष्यवाणी को सच साबित कर देगी। हम यहां जो बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वह सभ्यताओं का गठबंधन’ है, न कि टकराव। मैं यूएन एलायंस ऑफ सिविलाइज़ेशन को इसी तरह से काम करने और सभी के लिए बोलने का आह्वान करता हूं, न कि केवल कुछ चुनिंदा लोगों के लिए।
शर्मा ने अफगानिस्तान में कट्टरपंथियों द्वारा प्रतिष्ठित बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को तोड़ने और गुरुद्वारे पर बमबारी करने, हिंदू व बौद्ध मंदिरों को नुकसान पहुंचाने और कई देशों में इन अल्पसंख्यक धर्म के लोगों के सफाए का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने 193-सदस्यीय महासभा को बताया कि बौद्ध, हिंदू और सिख धर्मों के खिलाफ हिंसा जैसे कृत्य का निंदा होनी चाहिए, लेकिन मौजूदा सदस्य इन धर्मों के लिए ठीक तरह से आवाज नहीं उठाते।
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