बैंक अकाउंट है खाली, कर चुके हैं LLB,लोकसभा चुनाव के लिए सबसे गरीब प्रत्‍याशी

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए छोटे-बड़े दल अपने-अपने प्रत्‍याशी मैदान में उतार रहे हैं. इन प्रत्‍याशियों में कई तो करोड़पति हैं तो कुछ अरबपति भी. लेकिन मुजफ्फरनगर में एक प्रत्‍याशी ऐसे भी हैं जो संभवत: इस लोकसभा चुनाव के सबसे गरीब प्रत्‍याशी हैं. इनका नाम है मांगेराम कश्‍यप. पढ़े-लिखे मांगेराम कश्‍यप ने एलएलबी करने के बाद मजदूर किसान यूनियन पार्टी बनाई. मांगेराम के हलफनामे के मुताबिक बैंक अकाउंट में एक भी पैसा नहीं है. हां उनके पास एक मोटरसाइकिल जरूर है. लेकिन उसमें पेट्रोल भरवाने के लिए भी उनके पास पैसों की तंगी रहती है. वह आर्थिक तंगी के बावजूद लोकसभा चुनाव में अकेले बाइक पर अपने लिए मतदाताओं से वोट मांग रहे हैं.

पिछले तीन चुनाव में हारने के बाद भी एडवोकेट मांगेराम ने हार नहीं मानी और पत्नी और बच्चो के इंकार के बाद भी मांगेराम ने अपनी पार्टी मजदूर किसान यूनियन पार्टी के बैनर तले नामांकन पत्र दाखिल कर गठबंधन प्रत्याशी अजीत सिंह और भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान के सामने चुनाव लड़ने का मन बनाया है.

लहरों से डर कर नौका कभी पार नहीं होती ,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. सोहनलाल द्विवेदी की ये रचना मुजफ्फरनगर लोकसभा के प्रत्याशी मांगेराम कश्यप की बानगी को दर्शाती है. आर्थिक तंगी और परिवार से मनमुटाव के बावजूद एडवोकेट मांगेराम कश्यप अपना चौथा चुनाव लड़ रहे हैं. इससे पहले वो तीन और चुनाव में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कर चुके हैं. हालां‍कि इनमें उन्‍हें हार का सामना करना पड़ा था.

बता दें कि मांगेराम कश्यप मूलरूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं. बचपन में परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण परिवार के लोग उन्हें पढ़ाना नहीं चाहते थे. इसलिए वो अपना परिवार छोड़कर मुज़फ्फरनगर आ गए और यहां मजदूरी कर कॉलेज में एडमिशन ले लिया. यहां से बीएससी, बी.एड करने के बाद LLB कर कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे वकालत करने के साथ-साथ मांगेराम सामाजिक सेवा में भी अपना योगदान करने लगे और वर्ष 2000 में अपनी मजदूर किसान यूनियन पार्टी बनाकर अपने समाज के एक हजार सदस्य भी बनाए. मांगेराम इस चुनाव से पहले तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन आर्थिक तंगी और मतदाताओं को प्रभावित नहीं करने के कारण उन्हें निराशा ही हाथ लगी. बावजूद इसके 2019 के लोकसभा चुनाव में दो दिग्गज प्रत्याशियों के सामने मांगेराम ने अपनी पार्टी से नामांकन दाखिल कर चुनाव लड़ने का मन बनाया.

हालांकि मांगेराम के इस फैसले के बाद उनके परिवार ने उनसे दूरी बना ली. दो बेटों और पत्नी ने मांगेराम को समझाने की कोशिश की लेकिन मांगेराम ने जैसे ठान लिया है कि उन्हें चुनाव लड़ना है. फिर चाहे उन्हें हार का सामना ही क्यों करना पड़े. मांगेराम की मानें तो उनके और उनकी पत्नी के बैंक अकाउंट में कोई पैसा नहीं है. ले देकर एक बाइक है और एक पम्पलेट जिसके सहारे वो अपना चुनाव प्रचार-प्रसार करते हैं. कभी-कभी बाइक में पेट्रोल के लिए पैसे भी नहीं होते तो वो पैदल ही वोट मांगने निकल जाते हैं. मांगेराम के पास अपना घर भी नहीं है, जो है वो उनकी पत्नी के घर वालों ने दिया है.

वहीं उनकी पत्नी बबिता कश्यप और बड़े बेटे अभिषेक कश्यप का कहना है कि हमने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानते हैं जब घर की हालत ठीक नहीं है तो जरूरी नहीं कि चुनाव लड़ा जाए. चुनाव तो पैसे वाले ही लड़ और जीत सकते हैं. मांगेराम का कहना है कि मैं वकालत के साथ-साथ अपनी राजनैतिक पार्टी भी चलाता हूं और मैंने LLB, MSC के साथ साथ बीएड किया है. जब मैं इंटर कालेज में था तो उस समय हमारे कालेज में मुलायम सिंह और मायावती जी आई थीं तब उन्होंने कहा था कि आपको अपना हक वोट डालने से या चुनाव मैदान में उतरने से मिलेगा.

उनका कहना है तभी से मैं आम सभाओं और मीटिंग में जाने लगा और मैंने देखा कि सभी अपने-अपने समाज के लिए बोलते और करते हैं लेकिन चुनाव जितने के बाद कोई कुछ नहीं करता. तो हमने सोचा कि जो मतदाता अपना कामकाज छोड़कर मतदान करता है उसे कुछ नहीं मिलता इसलिए हमने अपनी पार्टी बनाई. जिसमें हमने तय किया की जो मतदाता है उसे अपने मतदान करने का मतदान मानदेय मिलना चाहिए. बचपन में मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.

मैं पढ़ना चाहता था लेकिन परिवार के लोग मुझे पढ़ाना नहीं चाहते थे इसलिए मैं घर से भागकर मुजफ्फरनगर आ गया और यहां मजदूरी और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर स्नातक किया और फिर LLB कर अपनी पार्टी बनाई. मेरे पास मतदाताओं को पिलाने के लिए शराब और घुमाने के लिए गाड़ी नहीं है. मैं अपनी फाइट संजीव बालियान से मानता हूं क्योंकि अजीत सिंह किसी मुकाबले में नहीं है. हमारा मुख्य मुद्दा यही है कि जो वोटर है उन्हें मानदेय मिलना चाहिए.

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