‘लिप्सटिक अंडर माई बुर्का’ फिल्म पर उठे विवाद के बीच सेंसर बोर्ड के प्रमुख पहलाज निहलानी ने कहा है कि यह संस्था सिर्फ फिल्मों को प्रमाणपत्र देने के लिए जिम्मेदार नहीं है. इस संस्था के पास भारतीय संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखने की भी जवाबदेही है.
दरअसल, सेंसर बोर्ड ने ‘लिप्सटिक अंडर माई बुर्का’ फिल्म को सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया था. इस फैसले के बाद पहलाज निहलानी कई बॉलीवुड हस्तियों के निशाने पर आ गए.
निहलानी ने कहा, ‘सेंसर बोर्ड सरकार का हिस्सा है. उसकी जिम्मेदारी सिर्फ फिल्मों को प्रमाणपत्र देने की नहीं है, बल्कि वह देश की संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखने के लिए भी जिम्मेदार है. सेंसर बोर्ड जरूरी है ताकि लोगों के सामने सही ढंग की फिल्में जा सकें.’
निहलानी ने कहा, ‘जब तक मैं यहां हूं, तब तक यथास्थिति बरकरार रहेगी. हम दिशानिर्देशों का अनुसरण करेंगे. मैं अपने विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों का धन्यवाद करता हूं जो संजीदगी और ईमानदारी से सरकारी नियमों का पालन कर रहे हैं.’
बोर्ड को फिल्म के शीषर्क से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन फिल्म में महिला सशक्तिकरण के विषय को जिस ढंग से दिखाया गया है, उससे आपत्ति है.
कब मिलेगी ऐसे लोगों से आजादी?
इधर, ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’के निर्माता प्रकाश झा ने कहा कि फिल्म उद्योग तब तक इस तरह की समस्याओं का सामना करता रहेगा जब तक ‘कुछ लोगों को’ फिल्म की सामग्री को सेंसर करने की आजादी होगी.
अलंकृता श्रीवास्तव के निर्देशन में बनी फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने ‘महिला केंद्रित होने’ और ‘अपशब्दों’ का इस्तेमाल होने के लिए प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया.
झा ने कहा, ‘यह (सेंसरशिप) समस्या तब तक बनी रहेगी, जब तक किसी के पास सेंसर करने की, कांट-छांट करने की ताकत या आजादी रहेगी. सीबीएफसी में कुछ सदस्य हैं, जिनकी अपनी खुद की सोच है और वे उसी के हिसाब से दिशानिर्देशों की व्याख्या करते हैं. वे अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब से फैसले लेते हैं.’
ब्रैड हमेशा एंजेलिना के लिए एक फेमिली की तरह रहेंगे
यह समस्या बनी रहती है, चाहे सीबीएफसी का सदस्य कोई भी हो. यह पहलाज निहलानी के कारण नहीं है. इसका समाधान तब ही होगा, जब हम सेंसरशिप खत्म कर देंगे और प्रमाणन की बात करेंगे.
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार ने कहा कि उम्र वर्ग के आधार पर फिल्मों को प्रमाणपत्र दिया जाना चाहिए और ‘सामग्री को सेंसर करने का अधिकार नहीं देना चाहिए.’
अगर सेंसर बोर्ड के मापदंडों पर कुछ चीजें खरी नहीं उतरतीं तो वे उन्हें गलत अर्थ में ले लेते हैं. ये मानवीय गलतियां हैं. मुझे लगता है कि मेरी फिल्म की कहानी बहुत ही खूबसूरत है. यह समाज के उस वर्ग की महिलाओं की कहानी है जिसे लोगों ने महसूस किया है लेकिन जो कभी बयां नहीं की गई, कभी सुनी नहीं गई.
‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ में रत्ना पाठक शाह, कोंकणा सेन शर्मा, अहाना कुमरा, प्लाबिता बोरठाकुर, सुशांत सिंह, विक्रांत मेसी और शशांक अरोड़ा मुख्य भूमिकाओं में हैं.
हस्तियों के निशाने पर सीबीएफसी
फिल्मकार श्याम बेनेगल, सुधीर मिश्रा, नीरज घैवान सहित अन्य ने प्रकाश झा की फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ को प्रमाणपत्र देने से इनकार करने के सेंसर बोर्ड के फैसले की आलोचना की.
अलंकृता श्रीवास्तव की इस फिल्म के कथित रूप से ‘महिला केंद्रित’ होने और इसमें ‘अपशब्दों’ के इस्तेमाल को लेकर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने उसे प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया.
बेनेगल ने सीबीएफसी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘सेंसर बोर्ड फिल्म को प्रमाणन दें, ना कि सेंसर करे. मैं फिल्मों की सेंसरशिप के खिलाफ हूं, किसी फिल्म की रिलीज रोकने को जायज नहीं ठहराया जा सकता.’
मिश्रा ने सेंसर बोर्ड पर सवाल उठाते हुए कहा कि उसके पास प्रतिभाशाली एवं युवा निर्देशकों को उनके काम का प्रदर्शन करने से रोकने का अधिकार नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘अलंकृता जैसी किसी कल्पनाशील, युवा प्रतिभाशाली निर्देशक को उनकी फिल्म के प्रदर्शन से रोकने का किसी को अधिकार नहीं है. बात यह नहीं है कि यह आपको (सीबीएफसी) पसंद आती है या नहीं. युवाओं को खुद को अभिव्यक्त करने का अधिकार है.’
‘मसान’ फिल्म के निर्देशक घैवान ने अलंकृता के समर्थन में उतरते हुए टि्वटर पर लिखा, ‘लैंगिक समानता के लिए पुरस्कार जीतने वाली अलंकृता की फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ को ‘महिला केंद्रित’ होने के कारण पुरूषवादी सोच तले दबाया जा रहा है.’
फिल्मकार अशोक पंडित ने कहा, ‘मैं प्रकाश झा की फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ को सेंसर बोर्ड का प्रमाणपत्र ना दिए जाने की निंदा करता हूं. यह पहलाज निहलानी के अहंकार को दिखाता है.’
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