मिशन 2019 के लोकसभा चुनाव में जुटीं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मुखिया एक बड़ी मुसीबत में घिरती नजर आ रही हैं। दरअसल, मायावती राज में बने स्मारकों के घोटाले की केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) से जांच की मांग को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका के मद्देनजर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से दर्ज प्राथमिकी की जांच की एक हफ्ते में प्रगति रिपोर्ट मांगी है। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि घोटाले का कोई दोषी बचना नहीं चाहिए। अब इस मामले की अगली सुनवाई कोर्ट ने 27 सितंबर को होगी।
बृहस्पतिवार को मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने मिर्जापुर के शशिकांत उर्फ भावेश पांडेय की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया है।
याचिका में अंबेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल लखनऊ, मान्यवर कांसीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा अंबेडकर पार्क, रामबाई अंबेडकर मैदान स्मृति उपवन आदि के निर्माण में 14 अरब 10 करोड़ 83 लाख 43 हजार रुपये के घोटाले का आरोप लगाया गया है। लोकायुक्त ने जांच रिपोर्ट में इस घोटाले का जिक्र है।ऐसे में इस घोटाले की जांच सीबीआइ या अन्य जांच एजेंसी से जांच की मांग की गई है
बताया जा रहा है कि अखिलेश सरकार ने जनवरी 2017 में गोमतीनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी और सतर्कता विभाग मामले की जांच भी कर रहा है। मामले में निर्माण निगम, पीडब्ल्यूडी, नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी के इंजीनियर और अधिकारी आरोपी हैं।
आरोप कि राजस्थान से 15 ट्रक पत्थर रवाना हुए, लेकिन मौके पर सात ट्रक ही पहुंचे। रास्ते में ही आठ ट्रक पत्थर हड़प कर लिए गए। यहां पर बता दें कि मामला 2007 से 2012 के बीच बसपा सरकार के दौरान नोएडा और लखनऊ में पार्कों और स्मारकों के निर्माण में घोटाले के आरोप का है। लोकायुक्त की जांच में 1400 करोड़ से ज्यादा का घोटाला सामने आया था।
इसमें बसपा सुप्रीमो मायावती, पूर्व मंत्री नसीरुद्दीन सिद्दीकी, पूर्व मंत्री बाबू राम कुशवाहा व 12 तत्कालीन विधायक इस मामले में आरोपी हैं. यही नहीं इस मामले में 100 से ज्यादा इंजीनियर और अन्य अधिकारी भी आरोपी बनाए गए हैं। इस केस में 2014 में सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी।