बरम्यूडा त्रिकोण की तरह रहस्य में उलझा अलीगढ़ संसदीय सीट का चुनाव

भाजपा उम्मीदवार सतीश गौतम को अपने नाम और काम से ज्यादा मोदी और योगी के करिश्मे पर भरोसा है तो सपा और बसपा उम्मीदवार को अपने कैडर वोटों के साथ ही दूसरे उम्मीदवारों के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने का विश्वास। सभी के अपने दावे और प्रतिदावे हैं। ऐसे में अलीगढ़ संसदीय सीट का चुनाव बरम्यूडा त्रिकोण की तरह रहस्य के परदे में लिपट गया है।

ताला और तालीम की नगरी अलीगढ़ में संसदीय सीट के लिए मतदान संपन्न हो गया। चुनावी अखाड़े में दो बार के विजेता और हैट्रिक लगाने के इच्छुक भाजपा के उम्मीदवार सतीश गौतम, सपा की ओर से पूर्व सांसद चौधरी बिजेंद्र सिंह और बसपा की ओर से हितेंद्र उपाध्याय उर्फ बंटी मुख्य उम्मीदवारों में शुमार किए जा रहे हैं। वैसे इस सीट पर कुल 14 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। कमाल की बात यह है कि मतदान से पूर्व जहां ये तीनों उम्मीदवार अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे थे, वहीं मतदान के बाद भी इनके दावे बदस्तूर कायम हैं। सबने मजबूती से चुनाव लड़ा है। 

भाजपा उम्मीदवार सतीश गौतम को अपने नाम और काम से ज्यादा मोदी और योगी के करिश्मे पर भरोसा है तो सपा और बसपा उम्मीदवार को अपने कैडर वोटों के साथ ही दूसरे उम्मीदवारों के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने का विश्वास। सभी के अपने दावे और प्रतिदावे हैं। ऐसे में अलीगढ़ संसदीय सीट का चुनाव बरम्यूडा त्रिकोण की तरह रहस्य के परदे में लिपट गया है। ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आगामी 4 जून को पता लगेगा।

इस बार के चुनाव की बात करें तो छह-आठ महीने पहले साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीतने का दावा कर रहे भाजपा उम्मीदवार सतीश गौतम का जब पार्टी की ओर से टिकट ‘होल्ड’ पर रखा गया तभी उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि मतदाताओं की तो छोड़िए उनकी अपनी पार्टी में उनके विरोधी कम नहीं हैं। पार्टी आला कमान को स्थानीय भाजपाइयों ने ही सांसद सतीश के मतदाताओं से उलझने, उन्हें डांटने,  यहां तक कि महिलाओं से रूखे ढंग से व्यवहार करने व गाली-गलौच के भी वीडियो-ऑडियो भेजे। भाजपा के वर्तमान और पूर्व विधायकों, जिला स्तर के पदाधिकारियों के साथ ही कुछ अन्य महत्वाकांक्षी स्थानीय भाजपा नेता तो सतीश गौतम का टिकट कटने की सूरत में खुद चुनावी अखाड़े में उतरने की योजना भी बनाने में जुट गए। 

फिलहाल, सांसद सतीश गौतम पार्टी के भीतर अपने विरोधियों पर भारी पड़े और अपना ‘होल्ड’ टिकट वापस लाए। लेकिन उनकी दुश्वारी कम नहीं हुई। सबसे ज्यादा मेहनत और ऊर्जा उन्हें अपनी पार्टी के रूठे लोगों को मनाने में खर्च करनी पड़ी। कुछ माने तो कुछ आखीर तक नहीं माने। चुनाव से पूर्व तक प्रबल विरोध कर रहे एक कारोबारी को सतीश गौतम मनाने में सफल रहे। कुछ लोगों ने उन्हें अपनी नाराजगी जताते हुए दो टूक जवाब दे दिया। चुनाव प्रचार के दौरान भी सांसद को वोटरों की नाराजगी दूर करने के लिए काफी पसीना बहाना पड़ा। क्षत्रियों की नाराजगी की बात भी सामने आई। क्षत्रिय बहुल इलाके में मुख्यमंत्री योगी ने जनसभा भी की। ब्राह्मण बसपा उम्मीदवार हितेंद्र उपाध्याय उर्फ बंटी के लगातार स्वजातीय सम्मेलनों और बैठकों में भागीदारी ने भी सतीश गौतम को परेशान किया। बसपा 2019 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी। पार्टी के ट्रैक रिकार्ड और पारंपरिक वोटों की नैया पर सवार होकर भी वह सफलता की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

भाजपा उम्मीदवार को मोदी-योगी के करिश्मे से ही आस
एक सांसद के तौर पर सतीश गौतम की हैट्रिक बहुत हदतक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करिश्मे पर टिकी है। मतदान के दिन ऐसे कई वोटर देखे गए जिन्होंने अपनी नाराजगी तो सतीश गौतम से जताई लेकिन मोदी और योगी के काम को बेहतरीन बताते हुए भाजपा को वोट डालने की बात कही। 2019 के चुनाव से लगभग छह फीसदी मतदान इस बार कम हुआ। संकेत साफ है कि मतदाताओं ने उत्साह कम दिखाया। इस बार का चुनाव अनूठा इसलिए भी था क्योंकि स्थानीय जनप्रतिनिधि के प्रति नाराजगी के बाद भी भाजपा के पारंपरिक वोटरों में योगी-मोदी के प्रति अनुराग और आकर्षण कम नहीं हुआ।

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का भी होगा असर
अलीगढ़ ने राममंदिर आंदोलन को दो बड़े नायक दिए हैं। विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल और हिंदू हृदय सम्राट की छवि रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह। दोनों इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में हुए राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के भव्य कार्यक्रम के बाद यहां के लोगों पर अशोक सिंघल और कल्याण सिंह की खासी चर्चा रही। इस अवसर पर घर-घर में लहराए गए भगवा ध्वज भी कार्यक्रम की महत्ता और असर को बयान करते रहे। 22 जनवरी के बाद से गंगा में बहुत पानी बह गया है। लोगों पर इसका कितना असर बाकी था, यह भी देखना होगा।

सपा उम्मीदवार को एम-वाई फैक्टर के साथ ही जाट वोटों  की भी आस

सपा उम्मीदवार चौधरी बिजेंद्र सिंह को स्वाभाविक तौर पर एम-वाई (मुस्लिम-यादव) के पारंपरिक वोटों का भरोसा था। जाट बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले चौधरी बिजेंद्र को उम्मीद है कि उन्हें अपनी बिरादरी के मतदाताओं ने खूब आशीर्वाद लुटाया है। इस बार चौधरी जयंत के भाजपा गठबंधन में शामिल होने के बाद भाजपा जाट वोटरों के साथ होने की आशा कर रही थी। लेकिन संभावना को बिजेंद्र सिंह ने खारिज किया है। उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देते हुए अपना भावुक चुनाव प्रचार किया। बिरादरी के बुजुर्गों के समक्ष उन्होंने पगड़ी की लाज रखने की भी बात कही। उनके प्रचार के तौर-तरीकों की खासी चर्चा भी रही। कहा जा रहा है कि बिजेंद्र सिंह को जाटों के मत बड़ी संख्या में मिले हैं। उनके अपनी जीत के दावे का अपना तर्क है।

बसपा को नए नायक आकाश आनंद और माया के असर का भरोसा
बसपा उम्मीदवार हितेंद्र उपाध्याय उर्फ बंटी के पक्ष में बसपा के नए नायक और मायवती के भतीजे आकाश आनंद ने सबसे पहले बैटिंग की। चुनाव प्रचार थमने के एक दिन पहले मायावती ने बड़ी चुनावी सभा करके इस बात को सिद्ध किया कि बसपा अलीगढ़ की सीट पर गंभीरता के साथ चुनाव लड़ रही है। रणनीतिक तौर पर ब्राह्मण की उम्मीवारी से वह भाजपा को पहले ही चौंका चुकी थी। माया ने अपनी सभा में मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने पर खास ध्यान दिया। लगभग तीन लाख ब्राह्मणों के वोट में सेंधमारी, अपने कैडर वोट के साथ मुस्लिम मतदाताओं के वोट के भरोसे बसपा उम्मीदवार दम भर रहे हैं।

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