बढ़ते तापमान के कारण भारत को हुआ 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान

प्रकृति को लेकर हम कितने उदासीन बने हुए हैं इसकी एक बानगी धरती का बढ़ता तापमान है। तापमान में हो रही थोड़ी सी बढ़ोतरी भी कितनी नुकसानदायक हो सकती है इसका अंदाजा लगाना भी एक आम इंसान के लिए मुश्किल है। लेकिन अब जी-20 के रिपोर्ट कार्ड में इसके बेहद चौकाने वाले तथ्‍य सामने आए हैं। इसके मुताबिक बढ़ते तापमान की वजह से वर्ष 1999-2018 के बीच भारत को 10 लाख करोड़ रुपये (14009 करोड़ डॉलर=1040308 करोड़ रुपये) से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। देश की जीडीपी पर यदि इसको आंका जाए तो ये करीब .26 फीसद होता है। ये नुकसान भारत के लगभग सभी राज्‍यों के सालाना बजट से भी अधिक है।

जी-20 का रिपोर्ट कार्ड

जी-20 के इस रिपोर्ट कार्ड में भारत अमेरिका के बाद तीसरे नंबर पर है। इसके बाद चीन को होने वाला नुकसान 26 लाख करोड़ से अधिक है। वहीं चौथे नंबर पर मौजूद आस्‍ट्रेलिया को 18 लाख करोड़ से अधिक, मैक्सिको को 22 लाख करोड़ से अधिक का नुकसान बताया गया है। वहीं अमेरिका की बात करें तो ये नुकसान 38 लाख करोड़ रुपये से अधिक का है, जो उसकी कुल जीडीपी का करीब .35 फीसद है। 1999-2018 के बीच में बढ़ते तापमान की वजह भारत में प्रति दस लाख लोगों पर सालाना औसत मृत्‍यु दर 2925 रही है। जबकि इसी दौरान रूस में ये 2939, फ्रांस में 1122, इटली में 997 और जर्मनी में 537 रही है। इस रिपोर्ट की मानें तो इस वर्ष पूरी दुनिया कार्बन उत्‍सर्जन में काफी कमी आई है। इसकी वजह वैश्विक महामारी कोविड-19 के तहत लागू किया गया लॉकडाउन रही है। इसकी वजह से पूरी दुनिया के देशों की अर्थ व्‍यवस्‍था में आई गिरावट को उबारने के लिए कई देशों ने विभिन्‍न घोषणाएं की है। इसको देखते हुए कार्बन उत्‍सर्जन में आई कमी अगली बार भी कायम रह पाएगी ये कहना काफी मुश्किल है।

नुकसान में दूसरे तो मौतों में तीसरे स्‍थान पर भारत

जी-20 देशों की बैठक के दौरान सामने आई क्‍लाइमेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट 2020 में कहा गया है कि इन बीस वर्षों के दौरान पूरी दुनिया में करीब 2.2 लाख लोगों की वजह धरती का बढ़ता तापमान बना है। भारत की ही बात करें तो हम जहां इससे होने वाले नुकसान में तीसरे नंबर पर हैं वहीं मौतों के मामले में दूसरे नंबर पर हैं। वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते में सभी देशों को मिलकर बढ़ते तापमान को कम करने की दिशा में काम करने की अपील की गई थी। इसके तहत 2 डिग्री तक तापमान को कम करने का लक्ष्‍य रखा गया है। भारत ने इस संबंध में काफी प्रयास किए हैं। चीन ने 2060 तक कार्बन उत्‍सर्जन को खत्‍म करने के लिए कोयले के इस्‍तेमाल को पूरी तरह से बंद करने का फैसला किया है। वहीं भारत की बात करें तो हम 2005 में तय किए गए लक्ष्‍य को पाने के करीब पहुंच रहे हैं। इसके तहत कार्बन उत्‍सर्जन में 35 फीसद तक कमी करना है।

बदलाव की बयार

आपको यहां पर ये भी बता दें कि भारत ऊर्जा के लिए विभिन्‍न विकल्‍पों पर काम कर रहा है। इसमें सौर और पवन ऊर्जा का इस्‍तेमाल अधिक से अधिक करना शामिल है। इसके लिए लोगों को जागरुक भी किया जा रहा है। वहीं डीजल-पेट्रोल से होने वाले नुकसान से बचने के लिए भारत धीरे-धीरे इलेक्‍ट्रॉनिक व्‍हीकल्‍स की तरफ आगे बढ़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने के लिए ईंधन के तौर पर इस्‍तेमाल की जा लकड़ी, उपले और कोयले में भी कमी आई है। सरकार ने इससे होने वाले नुकसान को देखते हुए इन क्षेत्रों में गैस कनेक्‍शन को काफी हद तक सुलभ बनाया है। इसका फायदा भी दिखाई देने लगा है।

अमेरिका की नाराजगी

वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते से अमेरिका ने अपने हाथ खींच लिए थे। अमेरिकी राष्‍ट्रपति का कहना था कि इससे उसको सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। वहीं भारत जैसे देश इसके एवज में फायदा ले रहे हैं। उनका ये भी कहना था कि अमेरिका इसके लिए सबसे अधिक वित्‍तीय सहयोग करता है, लिहाजा वो इसको बर्दाश्‍त नहीं कर सकता है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com