प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दिया है कि इस बार का आम बजट लोकलुभावन नहीं होगा। उन्होंने कहा, यह एक मिथक है कि आम आदमी सरकार से ‘मुफ्त की चीजों और रियायतों’ की उम्मीद रखता है। पीएम ने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि उनकी सरकार सुधार के एजेंडे पर आगे बढ़ती रहेगी। वह भारत को दुनिया की ‘पांच नाजुक’ अर्थव्यवस्थाओं से निकालकर एक ‘निवेश की चमकदार जगह’ में तब्दील कर देगी।पीएम ने बेरोजगारी के मुद्दे पर हो रही आलोचनाओं को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, रोजगार को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है। उनकी सरकार की नीति रोजगार पैदा करने वाली रही हैं। पीएम ने कहा, संगठित क्षेत्र 10 फीसदी रोजगार देता है। शेष 90 फीसदी रोजगार असंगठित क्षेत्र से आता है। पिछले एक साल में 18 से 25 साल की आयु के युवाओं के 70 लाख नए रिटायरमेंट फंड या ईपीएफ खाते खोले गए हैं। क्या यह नए रोजगार को नहीं दर्शाता। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है।
2014 के बाद नए सीए, वकील, डॉक्टर और कंसलटेंट ने काम करना शुरू किया है। पिछले तीन साल के दौरान सड़क निर्माण का काम दोगुना हो गया, क्या यह सब बिना लोगों को रोजगार दिए हुआ है। हम रेल पटरियों को भी डबल कर रहे हैं। इसके साथ-साथ विद्युतीकरण, बंदरगाहों के निर्माण का काम तेजी पकड़ रहा है, क्या यह सब बिना रोजगार दिए हो रहा है।
जब उनसे यह पूछा गया कि यह 2019 के आम चुनाव से पहले उनकी सरकार का अंतिम पूर्ण बजट होगा, तो मोदी बोले, यह वित्त मंत्रालय का मामला है और वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा, ‘लेकिन जिन लोगों ने मुझे गुजरात के मुख्यमंत्री और पीएम के रूप में काम करते हुए देखा है, वो जानते हैं कि आम आदमी मुफ्त चीजों और रियायतों की उम्मीद नहीं रखता। यह एक मिथक है। आम आदमी ईमानदार सरकार चाहता है। उनकी सरकार आम आदमी की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए फैसले ले रही है।’
क्या पहली फरवरी को आने वाला बजट लोकलुभावन होगा? इस पर उन्होंने कहा, यह तय कर लेने की जरूरत है कि देश को अगर विकास करना है तो उसे मजबूत बनना होगा। क्या राजनीतिक संस्कृति, कांग्रेस की संस्कृति को अनुसरण किया जाना चाहिए? किसानों के मुद्दे पर पीएम ने कहा, यह केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे किसानों से जुड़े मुद्दों की पहचान कर उन्हें हल करें।
5 बड़े मुद्दों पर बोले पीएम
1. न्यायपालिका का संकट
– सरकार और राजनीतिक दलों को इससे दूर रहना चाहिए। हमारी न्यायपालिका का बहुत उजला इतिहास रहा है। वे बहुत समर्थ लोग हैं। वे आपस में मिल बैठकर अपनी समस्याओं का हल निकाल लेंगे। मुझे अपनी न्यायिक प्रणाली पर पूरा भरोसा है।
2. पाक प्रायोजित आतंकवाद
मेरे प्रयास आतंकवाद को हराने के लिए दुनिया की ताकतों को एक साथ लाने के लिए हैं। भारत दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है। यह कहना की भारत की विदेश नीति पाक आधारित है, सरासर गलत है। पर आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखने वाले लोगों के खिलाफ दुनिया को एक होने की जरूरत है।
3. जीएसटी पर आलोचना
सरकार जीएसटी की कमियों को दूर करने तथा इसेएक कुशल कर में तब्दील करने के लिए और बदलाव को तैयार हैं। संसद में करीब 7 साल की चर्चा के बाद यह बिल पारित हुआ। जिन लोगों ने जीएसटी को पारित किया अगर वही भद्दी आलोचना करते हैं, तो यह ठीक बात नहीं। यह संसद का अपमान है। जीएसटी के अंदर सभी निर्णय सबकी सहमति से हुए हैं। एक बार भी वोटिंग की नौबत नहीं आई है। जीएसटी के निर्णय सबने मिलकर लिए हैं, पर ठीकरा केवल हम पर फोड़ने की कोशिश हो रही है।
‘दुनिया देख रही है भारत की ताकत’
4. तीन तलाक –
मैं मानता था कि कांग्रेस ने राजीव गांधी के दौर की गलती से सीख ली होगी। तीन तलाक पीड़िताओं की जो कहानियां मीडिया में आईं, वो आंखों में आंसू ला देने वाली थीं। क्या कांग्रेस इन विचलित कर देनेवाली कहानियों से भी नहीं पिघली। अगर कांग्रेस नहीं समझ पाई तो मन में पीड़ा होती है कि राजनीति कितनी नीचे गिर गई। क्या सत्ता की ऐसी भूख होनी चाहिए कि हम माताओं-बहनों को कष्ट में देखते रहें लेकिन अपनी राजनीति करें।… उन्हें भी शायद भीतर से पीड़ा होती होगी लेकिन राजनीति की वजह से सामने नहीं लाते होंगे।
5. कांग्रेस मुक्त भारत –
जब मैं कांग्रेस मुक्त भारत कहता हूं तो यह किसी पार्टी या संगठन के लिए नहीं है। कांग्रेस एक संस्कृति के रूप में देश में फैली हुई है। आजादी के बाद कांग्रेस की संस्कृति का जो रूप आया वह थोड़ा बहुत सभी दलों को खाने लगा है। जातिवाद, परिवारवाद, भ्रष्टाचार, धोखेबाजी, सत्ता को दबोचकर रखना…। यह कांग्रेस की संस्कृति है। कांग्रेस के लोग भी कहते हैं कि कांग्रेस एक सोच है। मैं उस सोच की चर्चा करता हूं… इसलिए जब मैं कांग्रेस मुक्त कहता हूं तो चाहता हूं कि कांग्रेस भी खुद को ‘कांग्रेस मुक्त’ कर दे। उस संस्कृति से मुक्त कर दे। मैं उन बीमारियों से मुक्ति की बात करता हूं, जो संभवत: उसी से शुरू हुईं।