100 बच्चों पर खुशियां लुटाती है ये ‘बड़ी मां’

शुरू में घुमंतू एवं झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले करीब 20 बच्चों का प्रवेश कराया, इसके बाद दूसरी बालवाड़ी बीसा कालोनी में खोली।

बुलंदशहर। कहा जाता है कि भगवान का दूसरा रूप मां है। पर इस दौर में ऐसे बच्चे भी हैं, जिनकी मां अभावों के चलते उनके सपने पूरा नहीं कर पातीं। ऐसे बच्चों के लिये मां का फर्ज निभा रही हैं नीरा मित्तल। इनमें भीख मांगने वाले बच्चे भी हैं और झुग्गियों में रहने वाले भी। उनके स्नेह और समर्पण पर प्यार लुटाते बच्चे उन्हें ‘बड़ी मां’ कहकर संबोधित करते हैं।

100 बच्चों पर खुशियां लुटाती है ये 'बड़ी मां'

कालाआम सिविल लाइन निवासी नीरा मित्तल ने दो दशक पहले तीन-चार वर्ष के कुछ बच्चों को भीख मांगते देखा तो मन विचलित हो गया। उसी शाम परिवार के साथ घूमने गईं तो फुटपाथ पर छोटे बच्चों को सोते देखा। उसी समय बारिश शुरू हुई तो नींद से जागे बच्चे रोने लगे। यह देख उनका दिल कांप गया। उस वक्त उन्होंने बच्चों को कुछ पैसे दिये।

घर की जिम्मेदारियों के कारण गरीब बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए समय और धन की व्यवस्था नहीं हो पाई लेकिन उन्होंने प्रण किया कि मौका मिलते ही ऐसे बच्चों के जीवन में उजियारा लाने की सार्थक पहल करेंगी। एक दशक पहले उन्होंने मोहल्ला गिरधारी नगर में बालवाड़ी खोली।

शुरू में घुमंतू एवं झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले करीब 20 बच्चों का प्रवेश कराया। कुछ अभिभावकों ने विरोध किया तो उन्हें किसी तरह समझाया। इसके बाद दूसरी बालवाड़ी बीसा कालोनी में खोली। दोनों में इस समय पांच-छह साल उम्र वाले 100 बच्चे पढ़ने आ रहे हैं। किताबों से लेकर सारा खर्च वे खुद उठाती हैं।

सुबह-शाम जाती हैं बालवाड़ी: बालवाड़ी में दो शिक्षिकाएं हैं। शिक्षिकाओं का बच्चों के प्रति व्यवहार जानने वे सुबह-शाम बालवाड़ी जाती हैं। बच्चे कुछ कमी बताते हैं तो उन्हें दूर भी कराती हैं। बच्चों के साथ सही व्यवहार नहीं करने पर एक शिक्षिका को निकाल भी चुकी हैं। बच्चे के पांच साल का होने पर अभिभावकों को नामांकन सरकारी स्कूल में कराने को प्रेरित करती रहती हैं।

रोजाना पहुंचाती हैं खाना: नीरा रोजाना बच्चों को कुछ न कुछ खाने के लिए लेकर पहुंचती हैं। बच्चे उनको बड़ी मां कहकर पुकारते हैं। बताती हैं कि बच्चों का यह संबोधन दिल को बड़ा सुकून देता है। यही बच्चे मेरी दुनिया हैं। मेरे तीन बेटे और पांच पोते-पोतियां हैं। पोते-पोतियों को बालवाड़ी में बच्चों से मिलवाने लाती रहती हूं।

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