‘बंद हो खेल-सुरक्षित हो रेल’, देश भर में दैनिक जागरण का विशेष अभियान

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रेल पटरियों के किनारे बसी अवैध बस्तियों को हटाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिया है, किंतु यह समस्या केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। नगरों-महानगरों में रेल पथ के इर्दगिर्द इस तरह का अतिक्रमण आम है। इससे न केवल रेल यातायात बाधित होता है, बल्कि सुरक्षा भी खतरे में पड़ती है। साथ ही इन अवैध बस्तियों में हर तरह का अपराध भी फलता-फूलता है। रेल यात्रियों सहित आम शहरी इसका शिकार बनते हैं।

वहीं, एक पहलू इनमें बसने वालों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण का भी है, जो अंततोगत्वा वोट बैंक का आधार बनता है। किंतु दिल्ली के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि इन बस्तियों को हटाने में किसी भी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जाएगा। साथ ही, इस मामले में पूर्व में दिए गए अदालतों के स्थगन आदेशों को भी उच्चतम न्यायालय ने निष्प्रभावी करार दिया है।

भले ही सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षा के दृष्टिकोण पर विचारण कर यह निर्देश दिया है, किंतु कुल मिलाकर संदेश यह भी गया है कि रेल पथ के इर्दगिर्द किसी भी प्रकार का अतिक्रमण कतई उचित नहीं है। अतः केवल दिल्ली में ही नहीं, वरन पूरे देश में रेल पथ को अतिक्रमण मुक्त कराना भारतीय रेल और शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी बन जाता है। इस जिम्मेदारी का निर्वहन क्यों आवश्यक है? अब तक ऐसा क्यों नहीं हो सका? क्या बाधाएं आड़े आती हैं? रेलवे की भूमि की सुरक्षा का जिम्मा किसका है? नियम-कानूनों की अनदेखी क्यों होती है?इसका ‘खेल’ का जिम्मेदार कौन है…?

दिल्ली पर आए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यह सभी बुनियादी प्रश्न देश के लिए सामयिक हो चले हैं। जहां-जहां इस प्रकार का अतिक्रमण वर्षों से बना हुआ है, इस विशेष अभियान के तहत वहां हम इन प्रश्नों को उठाएंगे, ताकि जनता जागरूक हो सके और शासन-प्रशासन सक्रिय। पढ़ें ‘दैनिक जागरण’ का विशेष अभियान ‘बंद हो खेल-सुरक्षित हो रेल’, कल से देशभर में।

 

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com