यह सात फेरे ही हिन्दु विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते है। अग्नि को साक्षी मानकर पति-पत्नी इसके चारों ओर घूमकर इन वचनों की शपथ लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सात वचन होते कौन से हैं जिन पर दो जिंदगियों की पूरी कहानी तय होती है। भारतीय शादी की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है।
यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्तें को सात जन्मों तक बांधते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात वचन ऐसे हैं जिन्हें सुनकर आपको भी लगेगा कि वाकई इसमें कुछ बात है और तभी भारतीय शादियां औसतन ज्यादा लंबे समय तक टिकी रहती हैं।
सात फेरों के सात वचन
वचन जो वर लेता है वधु से
पहला- अगर तुम मेरी अद्र्धांगिनी बनना चाहती हो तो किसी पर पुरुष से नहीं मिलना, बिना बताए मायके नहीं जाना और किसी निर्जन स्थान पर नहीं जाना।
दूसरा- रात में घर से नहीं निकलना और पानी भरने नहीं जाना।
तीसरा- किसी भी पूजन, जप-तप में मेरे साथ रहना।
चौथा- कभी कोई दान अकेले नहीं करना, उसमें मुझे सहभागी बनाना।
पांचवां- किसी पर पुरुष के साथ नहीं रहना और कहीं भी अकेले नहीं जाना।
वचन जो वधु लेती है वर से
छठवां- आप मुझे हर स्थान पर अपने साथ लेकर चलना, देश हो या विदेश।
सातवां- किसी भी काम को करने से पहले मुझसे सलाह जरूर लेना।
शादी के यह सात वचन ही भारतीय शादी की मजबुती को निर्धारित नहीं करते बल्कि पूरी शादी और उसके बाद सामाजिक संरचना भी इसकी मजबुती की नींव होती है। घर और समाज में शादी की परपंरा को प्यार के सहारे आज भी जिंदा रखा गया है। शादी में रिश्तों को निभाने की वचनबद्धता के साथ प्यार भी जरुरी होता है। वैसे प्यार तो हर रिश्ते के लिए जरुरी होता है।