जानकारी के अनुसार, 20 जुलाई 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चुनाव आयोग से साल 2019 के आम चुनाव से पहले वीवीपीएटी उत्पादन के टार्गेट को पूरा करने के लिए प्राइवेट कंपनी को इस काम में शामिल किए जाने को लेकर सुझाव मांगे थे. साथ ही उनसे इस संबंध में अनुमानित लागत राशि को लेकर भी जानकारी मांगी गई थी. वीवीपीएटी के टार्गेट को पूरा करने में मदद के लिए प्राइवेट कंपनी को शामिल करने का सुझाव पीएमओ में 11 जुलाई 2016 को हुई बैठक में दिया गया था, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव पी. के. मिश्रा ने की थी. इस बैठक में चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय और वित्त मंत्रालय से संबंधित अधिकारी भी शामिल थे.
इन आधारों पर चुनाव आयोग ने ठुकराई मांग
भारत में शुरुआत से ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वीवीपीएटी पब्लिक सेक्टर की यूनिट, बेंगलुरु स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटिड (बीईएल) और हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटिड (ईसीआईएल) द्वारा बनाई जाती है. चुनाव आयोग ने कैबिनेट की मांग को खारिज करते हुए वीवीपीएटी को इन यूनिट्स से ही बनवाए जाने की बात पर जोर दिया. आयोग की ओर से तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने अपनी बात को रखते हुए कहा-
-वीवीपीएटी को बनाए जाने का काम निजी कंपनी को दिए जाने पर जनता के विश्वास को ठेस पहुंच सकती है.
-पोल से पहले सभी वीवीपीएटी का सभी पॉलिटिकल पार्टीज की मौजूदगी में फील्ड चैक होता है. इसके बाद इन्हें बनाने वाली कंपनियों के इंजीनियर चुनाव से संबंधित डाटा ईवीएमऔर वीवीपीएटी में डालते हैं. तकनीकी विशेषज्ञ समिति को इस बात को लेकर संदेह था कि इस प्रक्रिया में निजी कंपनी के कर्मचारी क्या उतनी ही गोपनियता बरकरार रख पाएंगे जितना उन्हें बनाने वाली पब्लिक सेक्टर की कंपनियां ईसीआईएल और बीईएल रखती हैं.
-समिति की ओर से इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर की गई कि क्या ईसीआईएल और बीईएल की तरह प्राइवेट कंपनी वीवीपीएटी में कुछ गड़बड़ी आ जाने पर बिना किसी शर्त के 15 सालों तक सुधारने के वादे को अपना पाएंगी.
-इस बात का भी संशय है कि क्या प्राइवेट कंपनियां वीवीपीएटी को बनाते हुए सभी सुरक्षा संबंधी विशेषताओं का ध्यान रखेगी जो उसे टैंपर प्रूफ बनाती है.
-आखिर में समिति ने कहा कि क्या कम समय में ये प्राइवेट कंपनियां हाई-ग्रेड क्वालिटी एश्योरेंस इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टॉल कर पाएंगी जो मौजूदा समय में बीईएल और ईसीआईएल के पास है. जिसका उपयोग वे डिफेंस, अटॉमिक एनर्जी और स्पेस से संबंधित सामान बनाने में करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
गौरतलब है कि साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में सभी पोल पैनल में वीवीपीएटी के इस्तेमाल करने का आदेश दिया था, ताकि चुनाव में किसी भी प्रकार की धांधली को रोका जा सके. हिमाचल और गुजरात में हुए विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने इस निर्देश का पालन करते हुए सभी ईवीएम के साथ वीवीपीएटी का इस्तेमाल किया था. हालांकि, उत्तर प्रदेश में पिछले साल हुए चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद वीवीपीएटी की सत्यता पर भी सवाल उठाए गए थे.
बताया जा रहा है कि साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटिड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटिड (ईसीआईएल) को करीब 14 लाख वीवीपीएटी बनाने का ऑर्डर दे चुका है.
साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) यूनिट्स की कमी न हो इसके लिए केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग (इलेक्शन कमीशन) से इन्हें प्राइवेट कंपनी से खरीदने के लिए कहा था. साथ ही इसकी लागत को लेकर भी सवाल किया था. हालांकि, चुनाव आयोग ने सरकार की मांग को ये कहते हुए ठुकरा दिया कि किसी प्राइवेट कंपनी से वीवीपीएटी खरीदना सही नहीं है. ऐसा करने से जनता के विश्वास को ठेस पहुंच सकता है. ऐसे में वीवीपीएटी को पब्लिक कंपनियां जो पहले से इसे बनाती आ रही हैं, सिर्फ उन्हीं से बनवाया जाए.
प्राइवेट कंपनी को नहीं सौंपा जा सकता वीवीपीएटी का काम
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक, वीवीपीएटी से संबंधित इस जानकारी का खुलासा एक आरटीआई के तहत हुआ है. साल 2016 में जुलाई और सितंबर में कानून मंत्रालय की ओर से इस संबंध में चुनाव आयोग को तीन पत्र भेजे गए थे. जिसके जवाब में 19 सितंबर 2016 को मंत्रालय को बताया कि ऐसा करना ठीक नहीं है. आयोग की ओर से कहा गया कि, ‘हमारा मानना है कि प्राइवेट कंपनी को वीवीपीएटी जो ईवीएम मशीन का अहम अंग है, बनाने जैसा अति संवेदनशील कार्य नहीं सौंपा जा सकता है’.