प्रशांत किशोर ने CM नीतीश कुमार को पितातुल्य बताते हुए कहा-उनसे मेरे वैचारिक मतभेद हैं…

अलग-अलग चुनावों में अलग-अलग नीतियों वाली पार्टियों के लिए अलग-अलग लुभावने नारे गढऩे वाले चुनावी प्रबंधक प्रशांत किशोर ने मंगलवार को एक ही प्रेस कांफ्रेंस में कई विरोधाभासी बयान जारी किए और एलान किया कि वह अब बिहार में बदलाव के लिए काम करेंगे। प्रशांत ने सबसे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘पितातुल्य’ बताया।

कहा कि नीतीश ने मुझे पिता की तरह स्नेह दिया। उनका हर फैसला मंजूर है। उनपर टीका-टिप्पणी नहीं करूंगा। इसके तुरंत बाद वह राज्य सरकार की कमियां गिनाने लगे। यह भी कह दिया कि नीतीश कुमार भाजपा के ‘पिछलग्गू’ बन गए हैं। हालांकि, पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि वह भी तो 5 साल तक नीतीश के साथ थे और ‘बिहार में बहार है’ जैसे नारे गढ़ रहे थे, तो प्रशांत किशोर गोलमोल जवाब देते रहे और नीतीश से मतभेद की वजह गिनाने लगे।

प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी को पटना में प्रेस वार्ता की घोषणा कर रखी थी, तो देश भर की मीडिया वहां जुटी। यह खबर फैल रही थी कि प्रशांत बिहार में कोई अलग राजनीतिक फ्रंट खड़ा करेंगे, लेकिन उन्होंने इससे मना कर दिया।

कहा कि अभी वह बिहार की साढ़े आठ हजार पंचायतों के 10 लाख युवाओं के साथ ‘बिहार की बात’ अभियान शुरू करने जा रहे, जो बिहार में बदलाव के लिए होगा। उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि जब राजनीतिक दल ही नहीं बन रहा तो क्या वे युवा उनकी कंपनी से जुड़े होंगे?

नीतीश का हर निर्णय हृदय से स्वीकार है

 ‘नीतीश कुमार से मेरे संबंध आज के नहीं। उन्होंने मेरे साथ हमेशा बेटे जैसा व्यवहार किया और मैं भी उन्हें अपने पिता तरह मानता हूं। जब मैं जदयू में था, तब भी नीतीश कुमार को पितातुल्य ही मानता था। इस वजह से उनके निर्णय पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करूंगा। उनका जो भी निर्णय होगा हृदय से स्वीकार होगा।

पिछलग्गू हैं नीतीश कुमार 

‘लोकसभा चुनाव के वक्त से ही मतभेद शुरू हो गए थे। नीतीश गांधी, जेपी और लोहिया के आदर्श की बात करते हैं, पर गोडसे को समर्थन देने वालों के साथ खड़े हो जाते हैं। मतभेद गठबंधन में पोजिशन को लेकर भी है। नीतीश पहले भी भाजपा के साथ थे, लेकिन तब दो सांसदों वाली पार्टी के मेहनती नेता थे।

नीतीश कुमार तब दस करोड़ बिहारियों के नेता थे, लेकिन आज 16 सांसदों वाले नीतीश समृद्ध बिहार के नाम पर भाजपा के पिछलग्गू बन गए हैं। भाजपा उनकी बात नहीं सुनती। विशेष राज्य का दर्जा हो या पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की उनकी स्वीकार नहीं हुई। मेरा मानना है क्या यह गठबंधन कुर्सी या फिर दो अधिक सीट तक के लिए सीमित होकर रह गया है।

विकास तो हुआ है, लेकिन अभी भी पिछड़ा है बिहार 

प्रशांत किशोर ने दावा किया कि 2005 से अब तक बिहार में विकास तो हुआ है। स्कूलों में बच्चियों को साइकिल, घर-घर बिजली और सड़क पर काम हुआ, लेकिन दूसरे राज्यों के मुकाबले बिहार आज भी 22 वें पायदान पर ही है। प्रशांत ने अपनी इस बात के समर्थन में कुछ आंकड़े दिखाए।

कहा कि उनका उद्देश्य बिहार के विकास के लिए काम करना है। इसके लिए वे साढ़े आठ हजार पंचायतों के दस लाख युवाओं को जोड़कर बिहार की समृद्धि के लिए काम करेंगे, ताकि दस वर्ष में बिहार अग्रणी राज्य बन सके।

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