एजेंसी/प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी क्षेत्र बनारस के प्रह्लाद घाट निवासी रमाशंकर व बिंदू पांडे की सबसे छोटी बेटी गोरी पांडे (18) आज भी देशवासियों के लिए भले ही अंजानी हों, लेकिन खेल प्रतियोगिताओं में चर्चित चेहरा है।
दिल्ली में अपनी कोच श्यामला शेट्टी के साथ ट्रेनिंग कर रहीं गोरी कहती हैं कि मैंने वो वक्त भी देखा है, जब घर में एक रुपया नहीं होता था। पापा घाट पर पूजा करते हैं, यजमान मिल गए तो चूल्हा जलता था, नहीं तो गंगा मईया का पानी तो है ही।
गोरी उदास होकर कहती है कि सात भाई-बहन का परिवार था। मुझे पढ़ाई से अधिक वेट लिफ्टिंग (भार-तोलन) का क्रेज था, लेकिन शरीर में ताकत के लिए प्रोटीन युक्त आहार की कमी थी।इसी बीच बड़ी बहन को छोटी सी नौकरी मिल गयी तो उसने मेरे खाने का ध्यान रखना शुरू किया। जब मैं वेट लिफ्टिंग में जा रही थी तो मेरे पास आईकार्ड बनवाने के लिए पैसे नहीं थे।
लोगों की मदद से मैं छोटी-छोटी प्रतियोगिताओं से होते हुए वर्ष 2014 में हरियाणा में आयोजित नेशनल गेम्स में पहुंची, जहां कांस्य पदक मिला। उस वक्त किराया नहीं था। यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल मिला और यूथ नेशनल में फिर जीत मिली।
गोरी कहती है कि जीत अच्छी लगती है, लेकिन घर की हालत दयनीय थी। आज मैं कोच की मदद से जीत हासिल कर रही हूं और उनके चलते हॉस्टल में रहने, खाने-पीने का इंतजाम हो रहा है। इसलिए अब आसमां छूने की हसरत छोटी नहीं लगती। यदि आज से पांच साल पहले का वक्त याद करूं तो यकीन नहीं होता कि हम जिंदा हैं।प्रधानमंत्री जी मैं इंटरनेशनल वूमन डे पर आपसे यह अनुरोध करूंगी कि देश की छोटी-छोटी गलियों में हुनर और काबलियत है, लेकिन भुखमरी और गरीबी के अभाव में प्रतिभा आगे नहीं बढ़ पाती हैं।
भूखे रहकर देश के लिए मेडल लाना छोटी नहीं बड़ी बात है। ऐसी प्रतिभा को तराशने के लिए धरातल पर काम करने की जरूरत है। यदि परिवार के बाद मुझे कोच न मिली होती तो शायद मैं भी अपनी किस्मत मानकर चुपचाप बैठ जाती।
बस महिला दिवस पर ऐसी प्रतिभाओं को निखारने पर ठोस योजना बनाएंगे तभी सही मायने में महिला दिवस सार्थक होगा। सिर्फ एक दिन महिलाओं की उपलब्धियों को याद करने से कुछ नहीं होगा।